मॉड्यूल 18 - गतिविधि 2ः चिंतन करें

स्कूल में बाल शोषण क्यों होता है, इस पर अपने विचार साझा करें।

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  1. स्कूल में बाल शोषण क्यों होता है, इस पर अपने विचार साझा करें।

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    1. शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती हैं जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह मानसिक विकार के कारण हो सकता है।

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    2. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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    3. हमारे विद्यालय में बाल शोषण नही होता है । विद्यालय पहुँचते ही विद्यार्थियों के चेहरे खिल जाते हैं । पूरे विद्यालय के विद्यार्थियों को पाँच दलों में विभाजित कर प्रत्येक दल की जिम्मेदारी एक दलनायक व अध्यापक को दी गयी है । प्रत्येक छोटी से छोटी समस्याओं का निस्तारण व्यक्तिगत रूप से किया जाता है । मनोविश्लेषण पद्धति का प्रभावी उपयोग किया जाता है ।

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    4. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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    5. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
      जागरूक करते रहना चाहिये

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    6. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
      जागरूक करते रहना चाहिये

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    7. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये
      पाल्यों एवं अभिभावकों को गुडटच और बैड टच के बारे में जाकरूक करते रहना चाहिये

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    8. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
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      पाल्यों एवं अभिभावकों को गुडटच और बैड टच के बारे में जाकरूक करते रहना चाहिये

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    9. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
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    10. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
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    11. कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष मा
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।

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    12. Jagrookta hi ak uttam upay hai

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    13. kuchh vyakti mansik roop se vikrat hote hai, isiliye essi ghatnaye bacchh ke sath ghatati hai

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    14. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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    15. Ashkia bal so sad ka bahut bara karan ho sakta hai sjksha se ise kam kiya ja sakta hai

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    16. स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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    17. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना ,नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ ,जातिसूचक शब्दों का प्रयोग ,लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( -अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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    18. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।

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    19. विद्यालयों में शायद ही किसी प्रकार का शोषण होता है बच्चों के भविष्य के लिए कार्य करना शोषण कैसे हो सकता है। हां 'दण्ड देना ठीक नहीं है।

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    20. kuchh vyakti mansik roop se vikrat hote hai, isiliye essi ghatnaye bacchh ke sath ghatati hai

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    21. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए

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    22. kuchh vyakti mansik roop se vikrat hote hai, isiliye essi ghatnaye bacchh ke sath ghatati hai

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    23. kuchh vyakti mansik roop se vikrat hote hai, isiliye essi ghatnaye bacchh ke sath ghatati hai

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    24. Jagrook karenge ,samy ke prbandhan ke sath,surachhit rahne ki salah den ge, bachchon ki shisha men gap ko samapt karen ge ,parhai ka noqsan nahin hone denge.mohalla class ke dvara.

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    25. Jagrukta hi sase Accha upay hai

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    26. समाज वं बच्चों बाल शोषण के बारे मैं जागरूक किया जाये

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    27. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए

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    28. हमारे विद्यालय में बाल शोषण नही होता है । विद्यालय पहुँचते ही विद्यार्थियों के चेहरे खिल जाते हैं । पूरे विद्यालय के विद्यार्थियों को पाँच दलों में विभाजित कर प्रत्येक दल की जिम्मेदारी एक दलनायक व अध्यापक को दी गयी है । प्रत्येक छोटी से छोटी समस्याओं का निस्तारण व्यक्तिगत रूप से किया जाता है । मनोविश्लेषण पद्धति का प्रभावी उपयोग किया जाता है ।

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  2. When there is lack of proper information processing.

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    1. जागरूकता ही सबसे उपयुक्त मार्ग है हर समस्या को दूर करने का

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    2. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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    3. सामाजिक और मानसिक विकृति, अशिक्षा,परिवेश, समुदाय के साथ संवाद का अभाव, पॉक्सो अधिनियम १९१२ की जानकारी का अभाव,समय - समय पर शिक्षकों के प्रशिक्षण का अभाव, बच्चों के प्रति सकारात्मक सोच की कमी और उदासीनता, स्कूलों में शिकायत पेटी का अभाव,खुद को अनावश्यक रूप से लफड़े में न डालने की प्रवृति, आदि बाल यौन शौषण के कारण बनते हैं।

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    4. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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    5. बिजेन्द्र सिंह चौहान शंकुल शिक्षक इ.प्र.अ.उ.प्रा.वि.न.बख्ती किशनी मैनपुरी


      वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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    6. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  3. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  4. ICT को हिंदी में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी कहाँ जाता है यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां सूचना के संचार के के अनेक माध्यम जैसे (रेडियो,टेलीविज़न,सेल फोन,कंप्यूटर, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर) आदि विभिन्न सेवाओं के की मदद से सूचना प्रसारण की सुविधा प्रदान करता है।

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  5. Ritu Bhate

    Maybe because of lack of awareness, lack of parent's confidence on the child which resists the child to share the details of his life.

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  6. This is very useful for me to how can I teach students with new techanic.

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    1. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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    2. कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष मा
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है।

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  7. This is an experimental technical so I am use this techanic with very greatfully

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  8. At times, the abusive language is being used in the environment outside the school
    i.e the peer group or may be in the family.

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    1. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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    2. उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए

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  9. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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    1. बिजेन्द्र सिंह चौहान शंकुल शिक्षक इ.प्र.अ.उ.प्रा.वि.न.बख्ती किशनी मैनपुरी
      नमस्कार बन्धुओं!
      स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  10. Kyunki bachhe masoom hote h.unhe is trh k touch ka anubhav nai hota ,isk bare me bachho ko khulke btana pdega

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  11. धीरज कुमार सिलौटा

    स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

    धन्यवाद

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    1. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

      यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  12. Lack of parenting skills.
    Lack of support from parents.
    Domestic violence at home.
    Lack of proper information and negligence.
    Awareness is the best way to overcome all the problems.

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  13. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    बाल शोषण बच्चों के कोमल मन में नकारात्मक मनोविकार पैदा करता है जो बच्चों को चिड़चिड़ा बना देता है। साथ ही उसके मन में आक्रोश और डर की भावना घर कर जाती है।

    इस तरह के दण्ड बच्चों के मन में क्रोध, निराशा और अपने आप को नीचा देखने की भावनाओं को उत्पन्न करता है। इसके अलावा, बच्चे अपने आपको बेसहारा और अपमानित समझने लगता हैं। इस कारण वह अपनी क्षमता और स्वाभिमानता को खोने लगता है। इस वजह से वह अपने आप को अलग-थलग रखता व उद्दण्ड व्यवहार करता है। इस वजह से बच्चे अपने उलझनों का समाधान हिंसा और बदला लेना ही समझते हैं।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

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  14. Lack of support from parents . Lack of information and awareness . Lack of patents confidence on child due to which the child is not able to share his / her problem .

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  15. हर बच्चा बचपन से ही सही गलत का फैसला या फर्क नही कर सकता | इस लिए हर स्कूल में गुड टच बॅड टच का फर्क बताने के लिए खास तालिका रखनी चाहिए | जिससे उन्हें उसकी जानकारी प्राप्त हो | सिवाय उनके अन्दर से लिगभेद को हम इस माध्यम से ही दूर कर सकते हैं|

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  16. नमस्कार साथियों। आप सभी का हार्दिक स्वागत है। जहां तक विद्यालय में विद्यार्थियों के बाल शोषण की बात है तो मेरा विचार है कि इनके शोषण का मुख्य कारण इन्हें अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ ता, जागरूकता की कमी एवम् हम शिक्षक शिक्षिका की अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही भी है। अतः हम शिक्षक शिक्षिकाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि हम सब निश्चित रूप से बच्चो को इस दिशा में जागरूक करें। आपका साथी, अफजल हुसैन नव सृजित प्राथमिक विद्यालय ब हो रन सिंह के टोला, मांझी, सारण, बिहार। धन्यवाद्।

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  17. स्कूल में बाल शोषण के अनेक कारण हैं जैसे वर्ग भेद ,रंग भेद ,बुद्धि व शक्ति प्रदर्शन ,पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा हीन भावना की प्रतिक्रिया आदि |

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  18. Baal shoshan ke kai kaaran hain jaise personality,rang bed,heen bhavna,power aur family background etc.

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  19. स्कूल अथवा अन्य स्थानों पर बाल शोषण होने का सीधा सीधा संबंध जो बड़े होते हैं वह इस बात से भलीभांति परिचित होते हैं कि बच्चे इन सब भाषाओं को नहीं समझते ही नहैं और उनके साथ अभद्रता का व्यवहार करते हैं बच्चे नासमझ होते हैं वाकई वह उन बातों को नहीं समझ पाते है और वह अपना भला बुरा नहीं जानने के कारण शोषण की शिकार हो जाती है

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  20. राजेश कुमार kv nhpc सिंगताम
    शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती हैं जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह मानसिक विकार के कारण हो सकता है।

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    1. जागरूकता ही अच्छा मार्ग है

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    2. जागरूकता ही अच्छा मार्ग है

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    3. जागरूकता ही अच्छा मार्ग है

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  21. बाल शोषण का मुख्य कारण अध्यापक पर मानसिक दबाव होता है मान लो अध्यापक घर से परेशान होकर आया है तो वह अपना गुस्सा विद्यार्थी के काम ना करने पर उस बच्चे पर निकाल देता है कुछ हद तक शिक्षा व्यवस्था भी जिम्मेदार है कार्य का बोझ अध्यापक को स्वभाव से चिड़चिड़ा बना देता है जिससे वह बच्चों को यात ना देना शुरु कर देता

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  22. हर बच्चा बचपन से ही सही गलत का फैसला या फर्क नही कर सकता | इस लिए हर स्कूल में गुड टच बॅड टच का फर्क बताने के लिए खास तालिका रखनी चाहिए | जिससे उन्हें उसकी जानकारी प्राप्त हो | सिवाय उनके अन्दर से लिगभेद को हम इस माध्यम से ही दूर कर सकते हैं|

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  23. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  24. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  25. यह एक मानसिक विकार है

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  26. जागरूकता ही उचित मार्ग है।

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  27. बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  28. विकृत मानसिकता विद्यालय में बाल शोषण का कारण बनती है

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  29. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  30. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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    1. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
      जागरूक करते रहना चाहिये

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  31. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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    1. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
      प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  32. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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    1. इस कोविड-19 के दौर में बच्चों को उनके रूचि के अनुसार प्राप्त संस्थानों से कुछ टेक्निकल जानकारी देनी चाहिए l जिससे दैनिक जीवन में उसका उपयोग हो सकेl वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंगभेद उचित नहीं माना जा सकता l परंतु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दें l इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी चाहिए l स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र और छात्राओं के निकट संपर्क में रहते हैं l अतः सभी शिक्षकों को लिंग भेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर कार्य करना चाहिए l तभी हमारी भावी पीढ़ी का निर्माण हो सकेगा l तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए हैं l
      धन्यवाद

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  33. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  34. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  35. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  36. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  37. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  38. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  39. विकृत मानसिकता विद्यालय में बाल शोषण का कारण बनती है।

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  40. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  41. स्कूल अथवा अन्य स्थानों पर बाल शोषण होने का सीधा सीधा संबंध जो बड़े होते हैं वह इस बात से भलीभांति परिचित होते हैं कि बच्चे इन सब भाषाओं को नहीं समझते ही नहैं और उनके साथ अभद्रता का व्यवहार करते हैं बच्चे नासमझ होते हैं वाकई वह उन बातों को नहीं समझ पाते है और वह अपना भला बुरा नहीं जानने के कारण शोषण की शिकार हो जाती है

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  42. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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  43. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  44. स्कूल में बाल शोषण का एकमात्र कारण लापरवाही अपने अधिकार ना जाना और जागरूकता की कमी है बच्चों को उनके अभिभावक भी यह बताएं कि गुड और बैड टच क्या है तथा शिक्षक द्वारा अपने अधिकारों को जानना और जागरूकता फैलाना भी बाल शोषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

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  45. स्कूल में बाल शोषण के कई कारण हो सकते हैं । जिसमें एक कारण माता-पिता का किसी व्यक्ति विशेष पर अधिक विश्वास कर उसके सहारे छोंड़ देना , आवागमन के समय नजर न रखना भी है। कभी-कभी इन गतिविधियों की शुरुआत बाहर से होती है और विद्यालय उसका क्षेत्र बन जाता है । कभी कभी ऐसा भी देखने को मिलता है कि अध्यापक छात्र हित मे अति अपनत्व व विश्वास के कारण सामान्य भाषा का प्रयोग कर देता है जो बाल शोषण का कारण बन जाता है। अच्छा स्पर्श तथा गलत स्पर्श का ज्ञान न कराना। बच्चों से अधिक दूरी बनाकर रखना जिससे छात्र अपनी बात बाताने की हिम्मत न कर सके । यदि माता - पिता अथवा अध्यापक छात्रों को प्रारम्भ से शोषण सम्बन्धी सामान्य ज्ञान करा दे। तब भी अज्ञानता का लाभ उठाने वालों से काफी हद तक सफलता प्राप्त हो सकती है।


    डॉ ० बी पी मिश्र
    डीपीएस विंध्यनगर सिंगरौली मध्य प्रदेश

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  46. क्षितिज नीलिमा

    स्कूल में बाल शोषण होने का एकमात्र कारण लापरवाही और जागरूकता की कमी है।यह देखा गया है कि माता-पिता अक्सर किसी व्यक्ति विशेष पर अधिक विश्वास कर अपने बच्चे को उसके सहारे छोंड़ देते हैं , आवागमन के समय भी नजर नही रखते है। कभी-कभी इन गतिविधियों की शुरुआत बाहर से होती है और विद्यालय उसका क्षेत्र बन जाता है ।बच्चों को गुड टच एवं बैड टच के विषय मे भी जागरूकता का अभाव है |यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  47. बच्चे को गुड़ टच -बैड टच के बारे में जानकारी न होना।यदि बच्चे अपने अधिकारों को समझ जाय तो वह शोषण से बच सकता है।

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  48. बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  49. हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल एक विद्या का मंदिर है जहां छात्र और छात्राओं को शिक्षा के साथ - साथ कई कौशल्यों का ज्ञान दिया जाता है | हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  50. बच्चों को शुरू से गलत और सही की पहचान कराकर ओर समय समय पर कॉन्सेल्लिंग करके एक सकारात्मक वातावरण परिवेश का निर्माण कर कुछ भी गलत होने से रोका जा सकता है ।

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  51. शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती हैं जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह मानसिक विकार के कारण हो सकता है।स्कूल में बाल शोषण होने का एकमात्र कारण लापरवाही और जागरूकता की कमी है।यह देखा गया है कि माता-पिता अक्सर किसी व्यक्ति विशेष पर अधिक विश्वास कर अपने बच्चे को उसके सहारे छोंड़ देते हैं , आवागमन के समय भी नजर नही रखते है। कभी-कभी इन गतिविधियों की शुरुआत बाहर से होती है और विद्यालय उसका क्षेत्र बन जाता है |

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  52. स्कूलों में बाल शोषण होने के कई कारण हो सकते हैं :
    १) बच्चें मासूम होते हैं तो यह मानसिक विकृति वाले सहपाठी या अपने से बड़े बच्चो की
    दुर्भावना के सहज शिकार हो जाते हैं ,
    २) कभी कभी बच्चें बदले की भावना की वजह से भी शोषण के शिकार होते हैं ,
    ३)बच्चे कभी कभी खुद को व्यक्त नहीं कर पाते और वे शोषण के शिकार हो जाते हैं,
    ४)वे जिन पर भरोषा करते कभी कभी वे भी उनके शोषण कर लेते हैं|
    मूलतः बच्चे आसानी से शिकार बनाये जा सकते हैं क्योंकि वे नाजुक उम्र क होते हैं और व्यवहारगत हरकतों को आसानी से समझ नहीं पाते |

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  53. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  54. Anil Kumar Verma
    UMS HUDMUD Simaria Chatra
    स्कूल में बाल शोषण होने का एकमात्र कारण लापरवाही और जागरूकता की कमी है।यह देखा गया है कि माता-पिता अक्सर किसी व्यक्ति विशेष पर अधिक विश्वास कर अपने बच्चे को उसके सहारे छोंड़ देते हैं , आवागमन के समय भी नजर नही रखते है। कभी-कभी इन गतिविधियों की शुरुआत बाहर से होती है और विद्यालय उसका क्षेत्र बन जाता है ।बच्चों को गुड टच एवं बैड टच के विषय मे भी जागरूकता का अभाव है |यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  55. मेरे विचार के अनुसार बच्चों के बाल शोषण हेतु शिक्षकों का मानसिक स्तर जिम्मेदार है अलग-अलग मानसिक तनाव के चलते हेतु बच्चे बाल शोषण का शिकार होते हैं इसलिए आवश्यक है कि शिक्षकों को भी समय-समय पर सही जागरूकता का अनुभव कराया जाए

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  56. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  57. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  58. सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक परम्पराएं, जागरूकता का अभाव, मौलिक अधिकार की जानकारी का अभाव, अशिक्षा,अज्ञानता आदि।

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  59. बाल शोषण कुछ कुत्सित मानसिकता वाले अध्यापकों द्वारा होता है जिसके बारे में हम आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं या कुछ बड़े बच्चों द्वारा छोटे बच्चों के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार किया जाता है यदि संस्था प्रधान एवं अन्य अध्यापक गण जागरूक रहें तो इस तरह की घटनाओं को होने से रोका जा सकता है

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  60. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
    जागरूक करते रहना चाहिये

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  61. बाल शोषण के कई कारण हो सकते हैं। जिसमें पारिवारिक और सामाजिक दोनों कारण शामिल हो सकते हैं। बच्चे के साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा उन परिवारों में सबसे अधिक होती है जो आर्थिक या सामाजिक तौर पर दबाव में होते हैं। इनके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
    गरीबी
    शिक्षा का अभाव
    गंभीर वैवाहिक समस्याएं
    बार-बार रहने की जगह में परिवर्तन
    परिवार के सदस्यों के बीच हिंसा
    बहुत बड़ा परिवार होने के कारण विशेष देखभाल का अभाव
    अकेलापन और सामाजिक अलगाव
    बेरोजगारी
    रहने के लिए घर न होना

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  62. ये एक मानसिक विकार है,इसके अनेक कारण हो सकते हैं, आर्थिक स्थिति खराब होना, प्यार और स्नेह का अभाव ऐसे लोगों के अंदर तनाव , चिड़चिड़ापन और अलगाव सा होता है, अकेले में वह बाल उत्पीड़न जैसे कृत्य को करने से नहीं डरते ।

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  63. बच्चों को किसी के भरोसे छोड़ना,उनकी बात ना सुनना,उनको शारीरिक ही नहीं वरन् मानसिक रूप से प्रताड़ित करना। बच्चो के माता पिता के बारे में बोलना इत्यादि बातें बाल शोषण के अंतर्गत आती हैं

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  64. बच्चों को किसी के भरोसे छोड़ना,उनकी बात ना सुनना,उनको शारीरिक ही नहीं वरन् मानसिक रूप से प्रताड़ित करना। बच्चो के माता पिता के बारे में बोलना इत्यादि बातें बाल शोषण के अंतर्गत आती हैं

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  65. किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए ।

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  66. बच्चों को किसी के भरोसे छोड़ना,उनकी बात ना सुनना,उनको शारीरिक ही नहीं वरन् मानसिक रूप से प्रताड़ित करना। बच्चो के माता पिता के बारे में बोलना इत्यादि बातें बाल शोषण के अंतर्गत आती हैं

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  67. किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए ।

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  68. किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए ।

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  69. स्कूल में सभी प्रकार के बुद्धि लब्धि वाले बच्चे होते हैं जिसमें कुछ अच्छे प्रखर प्रतिभाशाली या सर्जनात्मक मालिक होते हैं वह कुछ बालक मंदबुद्धि या औसत बुद्धि वाले होते हैं इन सभी को यदि समान रूप से कार्य क्रियान्वयन के लिए दिया जाता है तो यह सामान प्रतिभा नहीं दर्शा पाते हैं इसलिए कई बार शिक्षक उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित कर देते हैं

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  70. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
    जागरूक करते रहना चाहिये

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    1. विद्यार्थियों की काउंसलिंग करना प्रतिदिन ही ऐसे कार्यों को रोक सकता है

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  71. प्रतिदिन बच्चों की काउंसलिंग करके ही ऐसे कार्यों को रोका जा सकता है

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  72. प्रतिदिन बच्चों की काउंसलिंग करके ही ऐसे कार्यों को रोका जा सकता है

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  73. बाल शोषण केवल स्कूल में ही नहीं बल्कि हर जगह हो रहा है।इसका एकमात्र कारण है रक्षक का ही भक्षक हो जाना।इसे गुरुता के अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।हम बच्चों के caretakers हैं और अगर हम ही उसकी सुरक्षा के प्रति लापरवाह रहेंगे तो फिर कानून कैसे हमारी मदद कर सकता है।स्कूल में शोषण होने से रोकने के लिए सभी हितधारको को मिलकर प्रयास करना होगा।

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  74. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  75. Reasons could be lack of parenting skills, lack of proper information and negligence.
    And also the school should be more student friendly and special counsellor should be arranged for such things.
    Awareness is the best way to overcome all the problems

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  76. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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  77. जागरूकता ही सबसे उपयुक्त मार्ग है हर समस्या को दूर करने का। बच्चों को गुड टच बैड टच के बारे में समय-समय पर बताना अत्यंत जरूरी है

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  78. प्रत्येक बच्चे को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती हैl और वे गुड और बेड टच के बारे में नहीं समझ पाते हैं l उनमें जागरूकता की कमी होने के कारण वे लैंगिक शोषण का शिकार हो जाते हैं l

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    1. प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  79. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते

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  80. विद्यालय परिसर में बाल शोषण के अनेक कारण हो सकते हैं, जिसके लिए हमारी सामाजिक-व्यवस्था और मानसिकता जिम्मेदार है | हमारी रूढ़िवादी सोच बच्चे की रुचि व क्षमता की उपेक्षा कर अपनी अपेक्षाओं को उन पर थोप देती है | हमारी शिक्षा-प्रणाली में विद्यार्थी की सफलता का आकलन उसके प्रगति-पत्र में प्राप्त प्राप्तांकों से किया जाता है, जिसके कारण शिक्षक और माता-पिता बच्चे पर अनावश्यक दबाव डालते हैं | विद्यालय में विभिन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि व वर्ग के बच्चे आते हैं, इसके साथ ही उनका मानसिक-स्तर भी भिन्न होता है | अच्छे परीक्षा-परिणाम का दबाव कहीं-न-कहीं शोषण का कारण बनता है | विद्यालय परिसर में शिक्षक व विद्यार्थी के अतिरिक्त अन्य कर्मचारी भी होते हैं | विकृत मानसिकता बाल-शोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, चाहे वह लिंग-भेद से संबन्धित हो, जाति-भेद, वर्ग भेद या उपेक्षा से जुड़ी हो | यदि गहराई से विचार करें तो जागरूकता और समुचित मार्गदर्शन की कमी बाल-उत्पीड़न को खत्म नहीं होने देती |

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  81. Child abuse should not be taken lightly in any institution. It can happen in neighbourhood, in family and even in school also in the form of discrimination, mental, emotional and physical harassments. School and teaches can play an important role in educating children and parents to aware about it. The main reason of child abuse may be due to sick social mentality where sex discriminations is the main root. From the birth only male and female child are discriminated , parent's over expectations towards their children in many fields also harrassing them emotionally, sick mentality is also encouraging sexual abuse and weak economical status of parents is main cause of physical exploitation. Teachers can play important and powerful role to fight against child abuse. Children from primary classes only can be awared by introducing a separate session about good and bad touches. A separate awareness programs can be conducted for parents where they can be asked to give their wards psychological and emotional support always. This year, definitely i am going to organize a session on it for parents.

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  82. मुझे लगता है कि स्कूल में इससे जुड़े कई कारकों के कारण बाल शोषण होता है। विद्यालय परिसर में बाल दुर्व्यवहार की पुष्टि करने वाले कारक: - # बच्चे के घर का माहौल # सहकर्मी दबाव # भय और भय # चिंता, उत्सुकता और उनके शरीर और उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी हो सकती है। स्कूली माहौल में अनुशासन की कमी और छात्रों की सुरक्षा के उपाय दोषपूर्ण हैं। कभी-कभी व्यवस्थापकों द्वारा इस ज्वलंत मुद्दों को आवाज देने के लिए तैयार की जाने वाली गलत नीतियां।

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  83. जागरूकता ही सबसे उपयुक्त मार्ग है हर समस्या को दूर करने का

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  84. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं।अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है।

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  85. विद्यालय में बाल-शोषण बच्चों पर पढ़ाई का अतिरिक्त दबाव देने, क्षमता से अधिक गृहकार्य देने या शारीरिक दण्ड व मानसिक प्रताड़ना जैसे डांटना,डराना या अपमानित करना आदि से होता है।

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  86. सामाजिक और मानसिक विकृति, अशिक्षा,परिवेश, समुदाय के साथ संवाद का अभाव, पॉक्सो अधिनियम १९१२ की जानकारी का अभाव,समय - समय पर शिक्षकों के प्रशिक्षण का अभाव

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  87. विकृत मानसिकता, अशिक्षा, अपमान, एंव अपने अधिकारों का ग्यान नहीं होने के कारण आदि से होता है ।

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  88. हर बच्चा बचपन से ही सही गलत का फैसला या फर्क नही कर सकता | इस लिए हर स्कूल में गुड टच बॅड टच का फर्क बताने के लिए खास तालिका रखनी चाहिए | जिससे उन्हें उसकी जानकारी प्राप्त हो | सिवाय उनके अन्दर से लिगभेद को हम इस माध्यम से ही दूर कर सकते हैं

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  89. सही शिक्षा का अभाव ही असली वजह है।

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  90. कोविड-19 के दौरान बहुत सारे अभिभावक ऐसे हैं जिनका व्यवसाय इस महामारी ने बुरी तरह प्रभावित हुआ है कारखानों में काम करने वाले मजदूर वर्कर्स इसके साथ ही किराना कपड़े के व्यवसाय कुल मिलाकर के बहुत सारे व्यवसाय से हैं जो इस महामारी में बुरी तरह प्रभावित हुई है उनके बच्चे भी इस आज समय विषम परिस्थिति से पीड़ित है परेशान है ऐसी स्थिति में शिक्षकों का यह कर्तव्य होता है कि वे बच्चों को ढाढस बंधा है साथ ही उन महा मारियो का उदाहरण दें जिसमें पहले भी इस प्रकार से समस्याएं आई थी मगर उन समस्याओं से उबरा जा चुका है यह समस्या भी एक दिन समाप्त हो जाएगी अब उन्हें कुछ ऐसे व्यवसाय के रूप में शिक्षक बता सकते हैं जो आज भी चल रहे हैं जैसे फल सब्जी या कृषि से संबंधित जो भी काम है वह जो है महामारी के दौर में भी अच्छे ढंग से चल रहे हैं और आय प्राप्त हो रही इस समय अपने व्यवसाय को थोड़ा सा बदलने की जरूरत है और पूरी तरह से संयम बरतें ऐसा हम बच्चों को समझा सकते हैं

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  91. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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  92. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  93. बाल शोषण जातिवाद से भी हो सकता है और लिंग भेद से भी हो सकता है

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  94. विद्यालयों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे बच्चे विद्यालय में अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सके ।

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  95. शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती हैं जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह मानसिक विकार के कारण हो सकता है।।
    मनसा कुमारी राठौर शिक्षामित्र

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  96. Langik shoshan aadhikaro ki jankari,hi es samasya Ka Uttam Nisan hai.wese lingbhed nindniy hai,

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  97. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  98. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।

    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।

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  99. हमारे विद्यालय में बाल शोषण नही होता है । विद्यालय पहुँचते ही विद्यार्थियों के चेहरे खिल जाते हैं । पूरे विद्यालय के विद्यार्थियों को पाँच दलों में विभाजित कर प्रत्येक दल की जिम्मेदारी एक दलनायक व अध्यापक को दी गयी है । प्रत्येक छोटी से छोटी समस्याओं का निस्तारण व्यक्तिगत रूप से किया जाता है । मनोविश्लेषण पद्धति का प्रभावी उपयोग किया जाता है ।

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  100. हमारे विद्यालय में बाल शोषण नही होता है । विद्यालय पहुँचते ही विद्यार्थियों के चेहरे खिल जाते हैं । पूरे विद्यालय के विद्यार्थियों को पाँच दलों में विभाजित कर प्रत्येक दल की जिम्मेदारी एक दलनायक व अध्यापक को दी गयी है । प्रत्येक छोटी से छोटी समस्याओं का निस्तारण व्यक्तिगत रूप से किया जाता है । मनोविश्लेषण पद्धति का प्रभावी उपयोग किया जाता है ।

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  101. Saririk shoshan school me Nahi hota hai.saririk shoshan Ka MATLAB hota hai Jan bujhkar bachchon ko mansik awm saririk rupse last dena

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  102. जागरूकता ही सबसे उपयुक्त मार्ग है हर समस्या को दूर करने का

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  103. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र। कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  104. School and teachers can play an important role in educating children about child abuse and small children awared about good and bad touch

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  105. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  106. आजकल स्कूलों मे बाल शोषण एक आम बात हो गई है बच्चों का शारीरिक एवम् मानसिक शोषण होता है उन्हें या तो छोटे मोटे प्रलोभन देकर या धमकी देकर राजी कर लिया जाता है बच्चों को उनके अधिकार बताए जाएँ उन्हें गुड टच एवं बेड टच से परिचित कराया जाए 1098 चाइल्ड हैल्प लाइन की जानकारी दी जानी चाहिये।

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  107. GPS devkadhura
    Anil Chandra pandey
    स्कूलों में बालशोषण का होना कई वजह से हो सकता है।
    बच्चों की उम्र के सापेक्ष कार्य की अधिकता होना, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक ना होना, इस तरह की गतिविधियों के प्रति संवेनशीलता का ना होना, जागरूकता कार्यक्रम को सफलतापू्वक ना बना पाना, बच्चों में आत्मविश्वास की कमी, भावनात्मक समर्थन ना मिल पाना आदि अनेक कारण हो सकते है।

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  108. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  109. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  110. यदि हर बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली-भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वह अपने आपको बचा सकता है।

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  111. School m Bal shoshnan ni hota h unke according hum log padhte h avm karya karte h thoda samjhate h lekin darate ni h .paxso act k bare m Puri jankari de Rakhi h bachao bhi bacho ko pata h...

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  112. विद्यालय में शिक्षकों द्वारा बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर दिया जाए गुड टच बैड टच की जानकारी दी जाए तो बच्चे शोषण से बच सकते हैं

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  113. Kuch vyakiti mansik rup se vikrati hotel ha esliye ye datnaye hoti ha

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  114. मोबाइल, टीवी, एवम् इसी प्रकार के अन्य साधन शोषण के लिए जिम्मेदार हैं।

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  115. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।

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  116. Baccho ke असुरक्षित वातावरण के के कारण भी योन शोषण होता है

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  117. यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।



    स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  118. शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती हैं जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह मानसिक विकार के कारण हो सकता है।

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    1. जागरूकता ही सबसे उपयुक्त मार्ग है हर समस्या को दूर करने का।बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे मे जानकारी अनिवार्य रूप से देनी चाहिए।

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  119. जागरूकता ही सबसे उपयुक्त मार्ग है हर समस्या को दूर करने का । बच्चों को गुड टच बैड टच के बारे में जानकारी देकर ।

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    1. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

      यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।

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  120. Bal poshan Mein pratyek baccha Apne adhikaron ke Prati Jagruk karna chahie

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  121. बाल शोषण विद्यालय में कई कारणों से हो सकता है जिनमे कुछ कारण हो सकते हैं- लापरवाही,जानकारी की कमी,पारिवारिक पृष्ठभूमि,लैंगिक दुर्भावना तथा भावनात्मक पिछड़ापन। बचने के लिए सबसे पहले कक्षा-कक्ष का माहौल सद्भावनापूर्ण ,सामानता से परिपूर्ण,सुनने के लिए तैयार रहना,समझदारी से पहल और भरोसा बनाना आवश्यक है।

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  122. वैसे तो किसी भी व्यवसाय में लिंग भेद उचित नहीं माना जा सकता परन्तु हम लिंगभेद को बढ़ावा ना दे इसकी शुरुआत हमें स्कूली शिक्षा से ही करनी होगी। स्कूल वह स्थान है जहां पर हम छात्र व छात्राओं के निकट संपर्क में रहते है। अतः सभी शिक्षकों को लिंगभेद के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए तभी हमारी भावी पीढ़ी का नव निर्माण हो सकेगा तभी हमें यह मानना चाहिए कि हम सच्ची शिक्षा दे पाए।

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  123. बाल शोषण इसीलिए होता है क्योंकि बाल्यावस्था में बच्चे सही गलत का निर्णय नहीं कर पाते और विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति शायद ये जानते हैं कि वे उनकी इस मजबूरी का फायदा उठा सकते हैं, और जब अतित में उनके द्वारा की गई हरकत का किसी को पता नहीं है तो उनके हौंसले और बुलंद होते जाते हैं।

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  124. स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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  125. स्कूल में हर जाति प्रत्येक समाज हर तबके से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं माता-पिता व में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना अध्यापकों के ऊपर माता-पिता या स्कूल मैनेजमेंट का बढ़िया रिजल्ट का अत्यधिक प्रसन्न सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण का शिकार होना पड़ता है

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  126. जब किसी अधिकार को छीन लिया जाता है या उसका उल्लंघन किया जाता है ,तो उसे दुर्व्यवहार कहा जाता है । सामान्यत दुर्व्यवहार को अधिकारों का उल्लंघन समझा जाता है तथा जब पीड़ित कोई बच्चा होता है तो वह बाल दुर्व्यवहार या बाल शोषण कहलाता है।

    अनुशासन के लिए छात्र को एक थप्पड़ मारना भावनात्मक शोषण का कारण बन सकता है ।विद्यालय में बच्चों को विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहार ओं का सामना करना पड़ता है ।जिसमें शारीरिक शोषण ,लैंगिक शोषण ,भावनात्मक शोषण तथा उपेक्षा शोषण आदि है।



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    1. जब किसी अधिकार को छीन लिया जाता है या उसका उल्लंघन किया जाता है ,तो उसे दुर्व्यवहार कहा जाता है । सामान्यत दुर्व्यवहार को अधिकारों का उल्लंघन समझा जाता है तथा जब पीड़ित कोई बच्चा होता है तो वह बाल दुर्व्यवहार या बाल शोषण कहलाता है।

      अनुशासन के लिए छात्र को एक थप्पड़ मारना भावनात्मक शोषण का कारण बन सकता है ।विद्यालय में बच्चों को विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहार ओं का सामना करना पड़ता है ।जिसमें शारीरिक शोषण ,लैंगिक शोषण ,भावनात्मक शोषण तथा उपेक्षा शोषण आदि है

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  127. बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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  128. विद्यालयों में शायद ही किसी प्रकार का शोषण होता है बच्चों के भविष्य के लिए कार्य करना शोषण कैसे हो सकता है। हां 'दण्ड देना ठीक नहीं है।

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  129. बच्चो में उचित जगरूकता के अभाव में बाल शोषण होता है ।अभिभावकों और अध्यापकों द्वारा उनकी ओर विशेष ध्यान न दिए जाने के कारण बालक बाल शोषण के शिकार होते है ।

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  130. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
    जागरूक करते रहना चाहिये

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  131. बच्चों का मन बड़ा ही कोमल होता है।उस पर शारीरिक अथवा भावनात्मक रूप से हुआ आघात जीवन भर अपना अमित छाप छोडती है।प्रशिक्षण की कमी अथवा आसंवेनशीलता के कारण जाने अनजाने में शिक्षक द्वारा जाती सूचक शब्द या अन्य प्रकार से भावन्तनक रूप से बच्चे हिंसा का शिकार हो जाते है।पाठ्यक्रम में भी अच्छे बुरे स्पर्श, यौन हिंसा, शारिरिक उत्पीडन के बारे में बताना चाहिए और इसके निवारण के उपाय तथा चाइल्ड हेल्पलाइन 1098, के बारे में पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए।

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  132. अभिभावकों द्वारा बच्चॉ पर उनकी क्षमता से अधिक हासिल करने की अपेक्षा करना,सामाजिक ताना बाना मे विषमता,जातिवाद,लैंगिक भेदभाव तथा बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित रखना,गुड टच और बैड टच के बारे बच्चों को स्पस्ट जानकारी न होना तथा इन परिस्थितियों में क्या प्रतिक्रिया देना है की जानकारी न होना आदि बाल शोषण के कारण हो सकते है ।

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  133. विद्यालयों में शायद ही किसी प्रकार का शोषण होता है बच्चों के भविष्य के लिए कार्य करना शोषण कैसे हो सकता है। हां 'दण्ड देना ठीक नहीं है हर अध्यापक अपने छात्र का अपना बच्चा समझकर अध्यापन करता है।

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  134. Due to lack of knowledge, children are not aware about good touch and bad touch. Students are not feeling free to share their details to their elders.

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  135. स्कूल अथवा अन्य स्थानों पर बाल शोषण होने का सीधा सीधा संबंध जो बड़े होते हैं वह इस बात से भलीभांति परिचित होते हैं कि बच्चे इन सब भाषाओं को नहीं समझते ही नहैं और उनके साथ अभद्रता का व्यवहार करते हैं बच्चे नासमझ होते हैं वाकई वह उन बातों को नहीं समझ पाते है और वह अपना भला बुरा नहीं जानने के कारण शोषण की शिकार हो जाती है

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  136. स्कूल अथवा अन्य स्थानों पर बाल शोषण होने का सीधा सीधा संबंध जो बड़े होते हैं वह इस बात से भलीभांति परिचित होते हैं कि बच्चे इन सब भाषाओं को नहीं समझते ही नहैं और उनके साथ अभद्रता का व्यवहार करते हैं बच्चे नासमझ होते हैं वाकई वह उन बातों को नहीं समझ पाते है और वह अपना भला बुरा नहीं जानने के कारण शोषण की शिकार हो जाती हैl

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  137. जहां तक विद्यालय में विद्यार्थियों के बाल शोषण की बात है,तो मेरे विचार से इनके शोषण का मुख्य कारण इन्हें अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ होना,जागरूकता की कमी तथा जो बड़े होते है वह इस बात से परिचित होते है कि बच्चे इन सब भाषाओं को समझते ही नहीं है ओर उनके साथ अभद्रता का व्यवहार करते है।बच्चे नासमझ होते है। वह अपना भला,बुरा नहीं जानने के कारण शोषण का शिकार हो जाते है तथा, शिक्षिकाओं का अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह होना भी है। अतः हम शिक्षक,शिक्षिकाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि हमसब बच्चो को इस दिशा में जागरूक करे।

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  138. बेहतर और प्रभावशाली कक्षा शिक्षण में बाल शोषण की संभावना कम रह जाती है क्योंकि बच्चे अपने अपने कामों में व्यस्त रहते हैं जिससे उनका ध्यान उधर नहीं जाता है फिर भी फिर भी एक शिक्षक का कर्तव्य एवं दायित्व है कि वह स्व नियंत्रित रहते हुए दूसरे साथी को भी स्वा नियंत्रित रहने की सलाह तथा विद्यालय में बच्चों का बच्चों के साथ बच्चों का शिक्षकों के साथ अभिभावकों के साथ उचित गतिविधियों पर ध्यान रखें तथा समय-समय पर ऐसे नुक्कड़ नाटक या संवाद रेडियो टीवी के माध्यम से बच्चों को अवगत कराएं कि उनके साथ बाल शोषण किस प्रकार हो सकता है इसकी जानकारी उन्हें विभिन्न प्रकार के माध्यम से करा सकते

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  139. LALIT KUMAR TIWARI PS KABIRABAD MUHAMMADABAD GOHANA MAU (UP)
    बच्चों के अधिगम स्तर से हटकर उन्हें काम देना नाजुक कंधों पर बसते का अतिरिक्त बोझ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग लैंगिक भेदभाव जैसी बहुत सी चीजें बाल शोषण के अंतर्गत आता है स्कूल में हर जाति हर वर्ग और समाज के हर तबके से बच्चे पढ़ने आते हैं( (((-अभिभावकों में शिक्षा की कमी और अत्यधिक महत्वकांक्षी होना शिक्षकों के ऊपर अभिभावक या स्कूल प्रबंधक का बढ़िया रिजल्ट का अतिरिक्त प्रेशर आदि सभी बातें मिलकर बच्चों को ना चाहते हुए भी शोषण झेलना पड़ता है

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  140. विद्यालय में बहुत अच्छा करने का दबाव , बच्चों की मन की बात न सुनना, उन्हें खेल कूद से रोक कर हर वक्त पढ़ाई-लिखाई का दबाव बनाना भी बच्चों का शोषण करना है

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  141. यह लोगों की विकृत मानसिकता है इससे सुरक्षा के लिए जागरुक होना अति आवश्यक है।

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  142. जरूरत से ज्यादा रोकटोक ,बच्चों की किसी बात को कोई महत्व न देना ,उनकी और बच्चों से तुलना करना आदि कारणों की वजह से शोषण होता है।

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  143. स्कूल में बाल शोषण होने का मात्र और एकमात्र कारण लापरवाही ,अपने अधिकार ना जानना और जागरूकता की कमी है।

    यदि प्रत्येक बच्चा विद्यालय में शिक्षकों द्वारा जागरूकता एवं अपने अधिकारों को भली भांति जान जाए तो किसी भी प्रकार से शोषण की स्थिति में वे अपने आपको बचा सकते है।
    खुद की लापरवाही भी बच्चो के शोषण का कारण बन जाताहै।
    बच्चो का मजबूत आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ मजबूत होना भी विधालय में उनके शोषण को रोकता है।



    वीनूलता(स०अ०)
    प्राथमिक विद्यालय भिस्वा,
    ब्लॉक ब्रह्मपुर गोरखपुर ,
    उत्तर प्रदेश ।

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  144. शारीरिक बाल शोषण की स्थिति तब होती हैं जब किसी बच्चे को शारीरिक तौर पर जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जाता है। यह मानसिक विकार के कारण हो सकता है।

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  145. School me baccho ka yaon shoshan ka karan bacche ka mansik , sharirik, aarthik aur paariwarik rup se kamjor hona ho sakta h.
    Es esthiti me shikshako ka dayitw badh jaata h. Class me sauhaardpurn aur lacheela vaatawaran banaate huye sabhi baccho ko saman awasar dena chaahiye .
    Baccho me kisi prakaar ka bhed-bhaw nhi rakhana chaahiye.

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  146. प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिये पाल्यों को जागरूक करते रहना चाहिये अभिभावको को भी समय -समय पर
    जागरूक करते रहना चाहिये

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  147. स्कूल में बच्चों का यौन शोषण इसलिए होता है क्योंकि कुछ लोग होते हैं वह मानसिक रोगी भी होते हैं इस वजह से वह बच्चों को डरा धमका कर उनके साथ गलत व्यवहार करते हैं इसीलिए बच्चों को शुरू से ही जागरूक होना चाहिए तो माता-पिता को भी उन्हें अवैध करना चाहिए और स्कूल में उस समय समय पर बच्चों को इस तरह की काउंसलिंग होनी चाहिए ताकि बच्चे इन समस्याओं से दूर रहें

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  148. स्कूलों में बाल उत्पीड़न के मामले इसलिए देखने में आते हैं, क्योंकि प्रत्येक बच्चे और प्रत्येक शिक्षक को व्यक्तिगत सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में समय-समय पर प्रशिक्षण या शिविरों के माध्यम से जागरूक नहीं कराया जाता है,और यदि कराया भी जाता है तो महज औपचारिक रूप से मात्र।कक्षा तीन से दस तक की पुस्तकों में लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम के कठोर प्रावधान,गुड टच एंड बैड टच के रूप में रंगीन चित्रों के द्वारा प्रदर्शन सम्मिलित नहीं किया जाता है।किन्तु यह आधुनिक समय की विशेष माँग है।
    प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के बच्चे मानसिक तौर पर यौन उत्पीड़न,यौन शोषण,पोर्नोग्राफी के खिलाफ अपनी बात कह पाने में सक्षम नहीं होते और उन्हें बड़ों के द्वारा यह जघन्य अपराध उजागर करने पर डराया धमकाया भी जाता है। इसलिए वह इस प्रकार के कुकृत्य का थोड़ी सी लालच या बहलावा से शिकार हो जाते हैं।जमीनी शिक्षा के रूप में बच्चों के लिए "लालच" और "बहलावा" पर प्राचीन रूढ़िवादी लैंगिक असमानता की कहानियां नहीं सामाजिक विकृतियों को भी उदाहरण उदाहरण स्वरूप पहचान कराना होगी ।स्कूलों के बच्चों मैं यह डर समाप्त करने की आवश्यकता है। आज इस प्रकार के अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों(Preventive Measures)पर भीअधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।

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  149. कुछ लोगों का चरित्र ही अधूरा होता है

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