मॉड्यूल 4- गतिविधि 4: सामाजिक मानदंड और व्यवहार का विवरण
निम्नलिखित कथनों पर विचार करें और साझा करें कि कुछ संस्थानों / विचारों और प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता क्यों है
1. पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
2. लड़कियों का शीघ्र विवाह
3. पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
4. दहेज प्रथा
5. बेटियों पर बेटों को वरीयता
6. मासिक धर्म की वर्जनायेँ
7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
8. लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
चिंतन के लिए कुछ समय लें और कमेंट बॉक्स में अपनी टिप्पणी दर्ज करें ।
1. पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
2. लड़कियों का शीघ्र विवाह
3. पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
4. दहेज प्रथा
5. बेटियों पर बेटों को वरीयता
6. मासिक धर्म की वर्जनायेँ
7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
8. लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
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Deleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
Deleteशिक्षा ने सभी भेदभाव खत्म कर दिये हैं लिहाज़ा हम सबको भी सभी भेदभाव खत्म करने चाहिए और समनता का व्यवहार करना चाहिए
Deleteसभी क्षेत्रों में लिंग भेद समाप्त होना चाहिए। और बालक , बालिका तथा ट्रांसजेंडर को हमेशा समान सुविधाएं और भागीदारी मिलनी चाहिए।
Deleteलड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिए
Deleteजैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
Bachchon me nai chetna ka sanchar hoga
Deleteलड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिए
Deleteशिक्षा ने सभी भेदभाव ख़तम कर दिए हैं, अब लड़कियां भी लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर हर क्षेत्र मे चल रहीं हैं।
Deleteबेटा बेटी एक समान हैं ।
Deleteसभी क्षेत्रों में लिंग भेद समाप्त होना चाहिए। और बालक , बालिका तथा ट्रांसजेंडर को हमेशा समान सुविधाएं और भागीदारी मिलनी चाहिए।
Delete
Deleteजैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं
Deleteजैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं ।
बेटा बेटी एक समान ।।
शिक्षा सभी रूढ़िवादी विचारों को खत्म कर देती है इसलिए लड़कियों की शिक्षा बेहद जरूरी है ताकि वे अपने अधिकारों को जान सके
Deleteसभी क्षेत्रों में लिंग भेद समाप्त होना चाहिए। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं । और दहेज प्रथा को भी खत्म कर देना चाहिए i
Deleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
Deleteजैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
Deleteजैसे-जैसे शिक्षा बढ़ रही है वैसे वैसे लड़की और लड़के में अंतर समाप्त हो रहा है लड़कियां सभी काम कर सकती हैं और उनका अधिकार भी लड़कों के बराबर है इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाए समाप्त होनी चाहिए
DeleteIt helps in gender equality and awareness
Deleteलड़कियों को भी लड़कों के समान सभी अधिकार दिए जाने चाहिए। लड़कियां और लड़के एक समान है।
Deleteजैसे जैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाए समाप्त होनी चाहिए
Deleteलडके और लडकियों मे कभी भेद नहीं करना चाहिए समाज को ये सब बदलना पडेगा
Deleteहमारे देश में जेंडर आधारितभेदभावकभी नहीं था। जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। कक्षा में हमको जेंडर के आधारपर भेद का सर्वथा त्याग करना होगा।
Deleteजैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
DeleteDono saman h dono ko saman absar milne chahiye
Deleteबेटा बेटी एक समान हो
DeleteVery usefull
ReplyDeleteBachchon me nai chetna Ka sanchar Hoga...
Deleteआजकल के जमाने में लड़कियां भी लड़कों से किसी भी छेत्र में कम नहीं हैं इसलिए लैंगिक भेदभाव समाप्त होना चाहिये
DeleteBacho mai nai chetna ka sanchar hoga
DeleteYes some drastic changes need to be done. Basis should be in the light of both the gender equality
Deleteबेटा बेटी एक समान सबको शिक्षा सबको शिक्षा सबको समान अधिकार
Deleteइस माड्यूल के माध्यमसे बच्चों को पढ़ाने मे बहुत मदद मिलेगी
ReplyDeleteइस मॉड्यूल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी विनोद कुमार सिंह प्रधानाध्यापक belhatha रानी की सराय आजमगढ़
DeleteUseful and interesting. Module
Deleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
Deleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
Deleteलिंग भेद को जड़ से मिटाएं किताबों में इस प्रकार के पाठ शामिल किए जाएं जो लिंगभेद पर आधारित ना हो और स्त्री और पुरुष दोनों को बराबर का महत्व दें
Deleteबेटा बेटी एक समान है दोनों ही ईशवर की संतान है फिर इनमें सामाजिक भेद क्यो
DeleteYes yah module padhaane mein bahut hi madad gaar sabit Hoga.
ReplyDeleteSaurab Kumar dubey-sitapur
Deleteहमें विद्यालयों में समाज में इस प्रकार की गतिविधियों और इस प्रकार के खेलों इस प्रकार की शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए जो लिंग भेद को जड़ से मिटाएं किताबों में इस प्रकार के पाठ शामिल किए जाएं जो लिंगभेद पर आधारित ना हो और स्त्री और पुरुष दोनों को बराबर का महत्व दें
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ReplyDeleteइस मॉड्यूल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी विनोद कुमार सिंह प्रधानाध्यापक belhatha रानी की सराय आजमगढ़
Har bachhe ki soch alag alag tarah ki hoti hai
ReplyDeleteEs parshikshan se hame bahut kuchh sikhne ko mil raha hai
ReplyDeleteYe gender smbndhi rudhyiyan bacchon me heen bhavna ko una deti h
ReplyDeleteहमें विद्यालयों में समाज में इस प्रकार की गतिविधियों और इस प्रकार के खेलों इस प्रकार की शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए जो लिंग भेद को जड़ से मिटाएं किताबों में इस प्रकार के पाठ शामिल किए जाएं जो लिंगभेद पर आधारित ना हो और स्त्री और पुरुष दोनों को बराबर का महत्व दें ओर साथ ही साथ ट्रांसजेंडर को भी आदर व सम्मान दे
Deleteहमें विद्यालयों में समाज में इस प्रकार की गतिविधियों और इस प्रकार के खेलों इस प्रकार की शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए जो लिंग भेद को जड़ से मिटाएं किताबों में इस प्रकार के पाठ शामिल किए जाएं जो लिंगभेद पर आधारित ना हो और स्त्री और पुरुष दोनों को बराबर का महत्व दें ओर साथ ही साथ ट्रांसजेंडर को भी आदर व सम्मान दे
DeleteAdvertisement of fareness creams are presented by females as our soceity likes the farere girls.
ReplyDeleteBut I like the ads in which girls and boys are treated in same manner. No gender bias should be there. In class also a teacher should treat children in equal manner
During lockdown , I am providing students with audio , video , images through whatsapp .
ReplyDeleteइस माड्यूल के माध्यमसे बच्चों को पढ़ाने मे बहुत मदद मिलेगी
ReplyDeleteREPLY
Unknown
इस मॉडल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत आसानी मिलेगी जिससे बच्चे घर बैठे शिक्षा प्रदान कर सकें
ReplyDeleteइस मॉड्यूल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी विनोद कुमार सिंह प्रधानाध्यापक belhatha रानी की सराय आजमगढ़
ReplyDeleteइस मॉडल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत आसानी मिलेगी जिससे बच्चे घर बैठे शिक्षा प्रदान कर सकें
ReplyDeleteAttitude to be developed among learners to see the colour of heart.
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ReplyDeleteAttitude to be developed among learners to see the colour of heart
ReplyDeleteit helps in gender equality and awareness
ReplyDeleteइस मॉड्यूल से पढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी
ReplyDeleteइस माड्यूल से शिक्षा में परिवर्तन लाया जायेगा।
Deleteशिक्षा में परिवर्तन लाया जाया जायेगा ,शुष्पेन्द्र कुमार प्रा० विO नोनार छ्तोह रायबरेली
DeleteRakesh Mishra
Deleteजैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
it helps in gender equality and awareness
Deleteइस मॉडल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत आसानी मिलेगी जिससे बच्चे घर बैठे शिक्षा प्रदान कर सकें
ReplyDeleteउपरोक्त मॉडल द्वारा शिक्षित करना अतिउत्तम होगा और सामाजिक विषमताएं कम होगी |
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteUseful and interesting module
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।ओर लड़कियों और ट्रांसजेंडर को भी आदर व सम्मान की दृष्टि से देखा जाये उन्हें भी सब जगह आदर व सम्मान मिलना चाहिए
Deleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteKeeping in view the social and economical changes the gender differences does not hold much of the concern in today's scenario wherein the government is also emphasising the equal rights for boys and girls in every field
ReplyDeleteवर्तमान में इनमें से कई बिंदु लगभग समाप्त हैं लेकिन कुछ कुप्रथाओं तथा अज्ञानता के कारण अभी चल रहे हैं जिन्हें शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है
ReplyDeleteDeepa singh(SM)
ReplyDeleteMost useful
लड़के और लड़कियों में शारीरिक भिन्नताएं होती हैं उसी के हिसाब से विवाह आदि कार्य करना चाहिए, बेटे हो बेटियां सब आपके अपने ही हैं, उनमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने की क्षमता दोनों की बराबर है।
ReplyDeletePhysical differences between boys and girls, marriage should be done accordingly, sons and daughters are all your own, there should not be any discrimination in them. Both have the ability to fly their dreams with wings.
ReplyDelete
ReplyDeleteलड़के और लड़कियों में शारीरिक भिन्नताएं होती हैं उसी के हिसाब से विवाह आदि कार्य करना चाहिए, बेटे हो बेटियां सब आपके अपने ही हैं, उनमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने की क्षमता दोनों की बराबर है।
लड़के और लड़कियों में शारीरिक भिन्नताएं होती हैं उसी के हिसाब से विवाह आदि कार्य करना चाहिए, बेटे हो बेटियां सब आपके अपने ही हैं, उनमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। अपने सपनों को पंख लगा कर उड़ने की क्षमता दोनों की बराबर है।
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के-लड़कियों में भेद को दूर करने के लिए सभी विषयों में कुछ अध्याय जोड़े जाए जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को दूर किया जा सके।
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके। तथा इन अध्यायों को पढ़ कर उन्हें व्यवहारिक जीवन में भी शामिल किया जाए।
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके। तथा इन अध्यायों को पढ़ कर उन्हें व्यवहारिक जीवन में भी शामिल किया जाए।
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Deleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteइन सभी पुराने विचारों को बदलने की आवश्यकता है क्योंकि यह सभी समाज व इन्सानो के लिए अभिशाप है।लैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।बेटियों की जल्दी शादी करना उनका जीवन खतरे में डालना है ।
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteवर्तमान में इनमें से कई बिंदु लगभग समाप्त हैं लेकिन कुछ कुप्रथाओं तथा अज्ञानता के कारण अभी चल रहे हैं जिन्हें शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता हैलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteलङकियां विज्ञान,गणित,अंतरिक्ष आदि सभी क्षेत्र में लङकों की तरह अपना योगदान दे रही हैं। इसलिए उनके साथ लङकों के समान व्यवहार करना चाहिए और जेंडर भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त होनी चाहिए।
Deleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteइस मॉड्यूल से पढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी.
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के लड़कियों में भेद को दूर करने के लिये सभी विषयों में कुछ अध्याय ऐसे जोड़ें जाएं जिससे लिंग भेद की कुप्रथा को समाप्त किया जा सके।
ReplyDeleteहमारे समाज में बहुत सी रूढ़ियां एवं प्रथाओं का चलन है जो हमारे समाज को दीमक की तरह खोखला कर रही हैं इन्हीं रूढ़ियों के कारण लैंगिक भेदभाव उत्पन्न होता है हमें अपने समाज से इन रूढ़ियों और प्रथाओं का चलन समाप्त करना होगा इसका एक साधन है बिना भेदभाव के शिक्षा देना
Deleteइस मॉडल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में बहुत आसानी मिलेगी जिससे बच्चे घर बैठे शिक्षा प्रदान कर सकें, हमें किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं करना चाहिए सभी एक समान हैं और सबको समानता का अधिकार है .
ReplyDeletemamta951982@gmail.com gender discrimination should be abolished
ReplyDeleteस्कूल मे शारीरीक शिक्षा प्रदान कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है , लिन्ग भेद की भावना को शिक्षा के माध्यम से दूर किया जा सकता है ।
ReplyDeleteहमारे समाज में आज कुछ ऐसे प्रथाओं का चालान है जिससे लैंगिक भेदभाव उत्पन्न होता है आज भी देखा जाता है कि कुछ ए पुत्र ही उत्तराधिकारी होता है पुत्री नहीं लड़कों की अपेक्षा लड़का का विवाह जल्दी कर दिया जाता है परिवार पुरुष प्रधान होता है दहेज प्रथा की समस्या है लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता है लड़कियों को यह बार-बार याद दिलाया जाता है कि तुम इस घर से कल को विदा हो जाओगी आज समाज को ऐसी सोच को बदलने की जरूरत है समाज में लिंग भेद को समाप्त करना नितांत आवश्यक है।
ReplyDeleteसामाजिक मानदंडों को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है । जो लोग मानदंडों का उल्लंघन करते है, समाज उन्हें दंडित करने का प्रयास करता है। समाज में इसी प्रकार मानदंडों के आधार पर बहुत सी प्रथाएं आज भी चल रही है। जैसे पुत्र ही पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकारी है जबकि पारिवारिक संपत्ति पर लड़कियों का भी अधिकार होना चाहिए। कुछ समाजों में लड़कियों का विवाह कम उम्र में ही कर दिया जाता है, बाल विवाह को रोकना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। पुरुष देखभाल करने वाले माना जाता है लेकिन आज के समय में महिलाएं अपने परिवार की देखभाल पुरुषों से भी अच्छे ढंग से करती है। समाज में बेटों तथा बेटियों दोनों को सामान वरीयता/अधिकार प्राप्त होने चाहिए। लड़कियों को बाहरी खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा लड़कियों को परिवार का अस्थायी सदस्य के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। इस प्रकार प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं को आज समाज द्वारा बदलने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteStudent ke beech bhed bhav bhi karna chahiye.
ReplyDeleteसमाज में जो भी कुप्रथाए है उन्हें समाप्त करना है | जिससे भेद भाव को कम किया जा सके |
ReplyDeleteसमाज में जो भी कुप्रथाए है उन्हें समाप्त करना है |
ReplyDeleteइस माड्यूल के माध्यमसे बच्चों को पढ़ाने मे बहुत मदद मिलेगी
ReplyDeleteYe sb kuprathaya khtm honi chaiye kyunki iss 21 century m sbhi ladle aur ladkiyon ko ek saman darza diya ja rha h aur iss adahar or bacho ki bhi damaj viksit krne m maddad milegi
ReplyDeleteUseful and interesting module
ReplyDeleteलड़कों व लड़कीयों दोनों ही के लिए सभी क्षेत्रों मे समान अवसर व समान अधिकार होने चाहिए |
ReplyDeleteताकि संतुलित समाज का विकास हो..….
ReplyDelete7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
ReplyDeleteइसके लिए किसी एक पुरुष या समाज के किसी एक हिस्से को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता वरन जिम्मेदार हमारा पूरा सामाजिक ढांचा है जिसे बदलना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यद्यपि पिछले कुछ समय में सरकार भी इस ओर सचेत हुई है। “बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ ” योजना , स्कूल चलो ,सेल्फ़ी विथ डॉटर , ऐसे कई कार्यक्रम शुरू करके सरकार ने लड़कियों के जन्म, उनके पालन पोषण और पढाई लिखाई पर विशेष ध्यान देना आरंभ कर दिया है।
आज के परिवेश में लड़के और लड़कियों में कोई भेद नहीं हैं। लड़कियाँ भी हर क्षेत्र में सफलता के नए मापदण्ड स्थापित कर रही हैं।
ReplyDeleteलिंग भेदभाव समाज के लिए अभिशाप है आज की की प्रासांगिक घटनाएँ हमें सोचने पर बाध्य करती है कि हमारा युवावर्ग लड़कियों को केवल उपभोग की वस्तु ही समझते है।ये बहुत गंभीर समस्या है हमारी जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों के विकास पर प्रबल जोर दे उनको हर दृष्टि से लड़कियों और औरतों का सम्मान करने की शिक्षा प्रदान की जाए इसमें हम शिक्षकों की भी अहम भूमिका है।ये मॉड्यूल इस विषय पर व्यापक रूप से प्रकाश डालता है निश्चित रूप से ही यह बहुत ही विशिष्ट है।🙏👌
ReplyDeleteलैंगिक विषमता एवं लड़के-लड़कियों में भेद, इसके लिए किसी एक पुरुष या समाज के किसी एक हिस्से को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता वरन जिम्मेदार हमारा पूरा सामाजिक ढांचा है, जिसे बदलना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteUseful
ReplyDeleteSabhi samajik rudhiwadi vicharon ko vidyalayon me adhyapako ke prayaso se hi door kiya ja sakta hai
ReplyDeleteसामाजिक मानदंडों को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है । जो लोग मानदंडों का उल्लंघन करते है, समाज उन्हें दंडित करने का प्रयास करता है। समाज में इसी प्रकार मानदंडों के आधार पर बहुत सी प्रथाएं आज भी चल रही है। जैसे पुत्र ही पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकारी है जबकि पारिवारिक संपत्ति पर लड़कियों का भी अधिकार होना चाहिए। कुछ समाजों में लड़कियों का विवाह कम उम्र में ही कर दिया जाता है, बाल विवाह को रोकना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। पुरुष देखभाल करने वाले माना जाता है लेकिन आज के समय में महिलाएं अपने परिवार की देखभाल पुरुषों से भी अच्छे ढंग से करती है। समाज में बेटों तथा बेटियों दोनों को सामान वरीयता/अधिकार प्राप्त होने चाहिए। लड़कियों को बाहरी खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा लड़कियों को परिवार का अस्थायी सदस्य के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। इस प्रकार प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं को आज समाज द्वारा बदलने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteकुछ बिंदुओं पर मा0 न्यायालय द्वारा निर्णीत किया जा चुका है। कुछ का शिक्षा के माध्यम से समाज मे जागरूकता लाने का प्रयास किया जा सकता है।
ReplyDeleteसामाजिक संस्थानों को लड़की और लड़के के विषय में अपनी सोच को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता है ताकि समाज मे महिलाएं भी अपनी पूर्ण रूप से भागीदारी कर सकें।उपरोक्त मान्यताओ के अतिरिक्त भी कई मान्यताये जैसे नाक कान बचपन मे ही छेद देना,शादी के लिए जेवर इत्यादि को जरूरी रूप से लड़की के लिए आवश्यक समझा जाना।
ReplyDeleteकन्याओं का विवाह उनकी शारीरिक ,मानसिक,बौद्घिक क्षमताओं एवं आवश्यकताओं कौ ध्यान में रखते हुए करना चाहिए ।
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteपरिवर्तन प्रकृति का नियम है।
ReplyDeleteबदली पारिवारिक,सामाजिक,आर्थिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों में रूढ़ियों को चरणबद्ध तरीके से खत्म किया जाना, एक बेहतर, प्रगतिवादी, और विकाशसील समाज के लिए प्रासंगिक और सामीचीन भी हूं।
सामाजिक संस्थानों को लड़की और लड़के के विषय में अपनी सोच को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता है ताकि समाज मे महिलाएं भी अपनी पूर्ण रूप से भागीदारी कर सकें।उपरोक्त मान्यताओ के अतिरिक्त भी कई मान्यताये जैसे नाक कान बचपन मे ही छेद देना,शादी के लिए जेवर इत्यादि को जरूरी रूप से लड़की के लिए आवश्यक समझा जाना।
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteयह काम पर्टिकुलरली लड़कियों के लिए बने हैं यह धारणा गलत है , हम अध्यापकों को इसे कम करने के लिए पहल करनी पड़ेगी इसकी शुरुआत क्लासरूम और स्कूल से हो सकती है जरूरी नहीं है कि रंगोली लड़कियाँ ही बनायेंगी , लड़के भी बना सकते हैं जरूरी नहीं कि लड़के ही फरसा चला सकते हैं लड़़कियाँ भी चला सकती हैं ऊपर प्रत्येक बिन्दुओं पर लड़के और लड़कियों में समाज और परिवार में भेदभाव और असमानता व्याप्त है इसे खत्म करने के लिए हमें आपको बिना देर किए आगे आना पड़ेगा ।
ReplyDeleteसमाज में महिला एवं पुरुष दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है । किंतु हमारा समाज पितृपक्ष रहा है । ऐसे में शिक्षा ही सामाजिक सोच में बदलाव ला सकती है । जैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये और हमे अपने समाज की नींव मजबूत करते हुए प्राथमिक शिक्षा से ही इन सोचों में बदलाव लाना चाहिए ।
ReplyDelete
ReplyDeleteसंजय कुमार। स. अ. प़ा.वि. अनंतपुर आजमगढ़
समाज में लड़के और लड़कियों के विषय में सोचने में बदलाव आ रहा है ।अब लड़के और लड़कियों के समान नजर से देखा जा रहा है।
वर्तमान में इनमें से कई बिंदु लगभग समाप्त हैं लेकिन कुछ कुप्रथाओं तथा अज्ञानता के कारण अभी चल रहे हैं जिन्हें शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है
ReplyDeleteसमाज में लड़के और लड़कियों के बारे में सोचने में काफी बदलाव हुआ hai. लड़का लड़की एक समान हमेशा दोनों का करो सम्मान.
ReplyDelete1. पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
ReplyDeleteलड़कियाँ क्यों नही । लड़कियां भी बराबर की हकदार हैं। एक माँ बाप की औलाद सभी में बराबर की हक़ रखती है। जिस तरह पेड़ अपना फल देने में किसी से भेदभाव नही करता उसी तरह माता पिता को भी अपनी संपत्ति देने में कोई भेदभाव नही करना चाहिये।
2. लड़कियों का शीघ्र विवाह
लड़कियों का शीघ्र विवाह उन्हें मौत के गर्त में धकेलने के समान है। शरीर परिपक्व न होने पर जच्चा बच्चा दोनों की जान का खतरा रहता है।
3. पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
स्त्री को देखभाल की विशेष आवश्यक्ता होती है।
उसके शरीर मे होने वाले जैविक बदलावों के कारण उन्हें पुरुषों की तुलना में अधिक पोषण युक्त भोज्य पदार्थ की आवश्यकता होती है।
4. दहेज प्रथा
दहेज लेना और देना दोनो अभिशाप है।
5. बेटियों पर बेटों को वरीयता
लैंगिक भेदभाव सदैव निम्नता की औऱ ले जाता है। बेटियों को बराबर वरीयता उनका कानूनी हक है।
6. मासिक धर्म की वर्जनायेँ
सही जानकारी व रोगों से बचाव और वर्जनायों ( भ्रांतियों से ) से सही जानकारी व समुचित पुष्टाहार उपलव्ध कराया जाना चाहिए।
7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
ऐसा करना गलत है। उनके अधिकारों का हनन है।समुचित विकास के लिए शारीरिक गतिविधि अत्यन्त आवश्यक है। शारीरिक विकास और मानसिक विकास एक दूसरे के पूरक है। दोनों साथ साथ चलते है।
8. लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
लड़कियां स्थाई सदस्य है। वे कई रिश्तों को पूरा करती है। इसलिए वे घर के स्थायी सदस्य होने के साथ वंदनीय है।
जैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteइस मॉड्यूल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में काफी मदद मिलेगी।
ReplyDeleteलड़के लड़कियॉ के सामान अधिकार है
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है
वैसे वैसे लडके लड़कियों में भेद खत्म हो रहा है ।।
अपर्णा पाण्डेय
प्रा० वि० गुरैयनपुर
ब्लाक - घाटमपुर
जिला - कानपुर नगर
आज के युग में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहां लड़कियों की पहुंच ना हो।तो ऐसे में किसी भी तरह से लडकोल और लड़कियों में भेद करना उनके साथ ज्यादती करने के समान होगा।
ReplyDeleteशिक्षा की सर्वर व्यापकता से अब अधिकांश स्थानों से भेदभाव समाप्त हो रहा है।
ReplyDeleteअमर सिंह सोलंकी
शासकीय माध्यमिक विद्यालय द्वारका नगर भोपाल मध्यप्रदेश।
जैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteसामाजिक मानदंडों को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है । जो लोग मानदंडों का उल्लंघन करते है, समाज उन्हें दंडित करने का प्रयास करता है। समाज में इसी प्रकार मानदंडों के आधार पर बहुत सी प्रथाएं आज भी चल रही है। जैसे पुत्र ही पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकारी है जबकि पारिवारिक संपत्ति पर लड़कियों का भी अधिकार होना चाहिए। कुछ समाजों में लड़कियों का विवाह कम उम्र में ही कर दिया जाता है, बाल विवाह को रोकना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। पुरुष देखभाल करने वाले माना जाता है लेकिन आज के समय में महिलाएं अपने परिवार की देखभाल पुरुषों से भी अच्छे ढंग से करती है। समाज में बेटों तथा बेटियों दोनों को सामान वरीयता/अधिकार प्राप्त होने चाहिए। लड़कियों को बाहरी खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा लड़कियों को परिवार का अस्थायी सदस्य के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। इस प्रकार प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं को आज समाज द्वारा बदलने की आवश्यकता है।
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ReplyDelete1. पुत्र पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं
अभी इस सम्बंध में काफी कार्य होना बाकी है क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुत्र को ही पारिवारिक संपत्ति का अधिकारी माना जाता है। माता-पिता को अपनी सम्पत्ति बिना किसी भेदभाव के पुत्र-पुत्रियों में समान रूप से बाँटनी चाहिए।
2. लड़कियों का शीघ्र विवाह
लड़कियों का शीघ्र विवाह होने से उन्हें अपनी शैक्षिक उन्नति से हाथ धोना पड़ता है । साथ ही उनका शारीरिक विकास बाधित होता है। जिसके कारण भविष्य की माँ और उसकी संतानें भी शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व हो जाती हैं। किसी भी जेंडर की शैक्षिक परिपक्वता बाधित होने से भविष्य का समाज विकृति लिए हुए ही होगा।
3. पुरुष देखभाल करने वाले/पोषण करने वाले
पोषण युक्त भोजन करना पुरुष और महिलाओं दोनों को ही अति आवश्यक है। बल्कि महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक संतुलित आहार की आवश्यकता होती है क्योंकि महिलाओं में शारीरिक और जैविक परिवर्तन पुरुषों की अपेक्षा अधिक होते हैं।
4. दहेज प्रथा
दहेज प्रथा भारतीय समाज में एक कोढ़ के समान है। यदि महिलाओं की दिशा और दशा सुधारनी है तो दहेज रूपी कोढ़ का इलाज करना ही होगा।
5. बेटियों पर बेटों को वरीयता
वैसे तो अब समाज में काफी बदलाव आया है लेकिन अभी भी बेटों को वरीयता देना दिखाई देता है। इसे हमें पूर्ण रूप से समाप्त करना होगा।
6. मासिक धर्म की वर्जनायेँ
हमारे समाज में अनेकों भ्रांतियाँ इस सम्बंध में फैली हुई हैं। हमें उन भ्रांतियों का निवारण करना ही होगा। जिसके फलस्वरूप महिलाएं अनेक रोगों से अपना बचाव कर सकेंगी और एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा।
7. लड़कियों की शारीरिक गतिशीलता पर प्रतिबंध
आज लड़कियाँ भी पर्वतारोहण, खेल,प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में अपना परचम फहरा रहीं हैं। इसलिए लड़कियों पर प्रतिबंध लगाना विकृत मानसिकता का प्रतीक है।
8. लड़कियाँ परिवार की अस्थायी सदस्य हैं
हमें अपने समाज का यह मिथक तोड़ना होगा। अस्थाई सदस्यता की भावना लड़कियों को कमजोर बनाती है। अगर हमारे समाज की एक कड़ी कमजोर होगी तो हमारा सामाजिक ढाँचा भी कमजोर होगा। अतः हमें लड़कियों को भावनात्मक और मानसिक रूप से मज़बूत बनाना होगा।
चन्द्रशेखर(स अ),
उच्च प्रा वि घुसराना गैल(1-8 कम्पोजिट),
ब्लॉक- डिबाई,
जनपद- बुलन्दशहर(उ प्र)।
ये रूढ़िवादिता समाज में चली आ रही हैं उनको खत्म करने के लिए समाज को शिक्षित करना ही एकमात्र विकल्प है ज्यादातर रूढ़िवादिता खत्म हो चुकी है लेकिन कुछ रूढ़िवादिता है जो अब भी पैर जमाए हुए हैं धीरे-धीरे वह भी समाप्त हो रही है
ReplyDeleteलड़कियों की शिक्षा से ही बदलाव सम्भव है लड़कियों में आत्म विश्वास की भावना को बढ़ाना चाहिए ।
ReplyDeleteलड़कियों को प्रेरित करना चहिए की वह सब कुछ कर सकती है।
जैसे लोगो में जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे। लड़के ,लडकीयों में अंतर भी समाप्त हो रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteआज के इस सामाजिक परिवेश में जिस तरह से शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। समाज में लड़के एवम् लड़कियों के बीच अंतर भी समाप्त हो रहा है। और आज जरूरत भी हैं कि भेद भाव वाली प्रथा का अंत हो।
ReplyDeleteJaise jaise Shikha badh rahi hai bhedbhaav khatam ho raha hai
ReplyDeleteलड़कियों को फोर्स में भर्ती करके बराबरी का दर्जा देना बहुत अच्छा कदम है
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ReplyDeleteसभी क्षेत्रों में लिंग भेद समाप्त होना चाहिए। और बालक , बालिका तथा ट्रांसजेंडर को हमेशा समान सुविधाएं और भागीदारी मिलनी चाहिए।
ReplyDeleteआज के परिदृश्य में यह जरूरी है कि समाज में स्त्री और पुरुष को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हों, क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही लड़का-लड़की के भेदभाव से समाज को मुक्त किया जा सकता है। समाज के समुचित विकास के लिए स्त्रियों के सहयोग की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी पुरुष के योगदान की। दूसरा स्त्रियों को भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा और महत्व सिद्ध करने के लिए शिक्षित होकर आत्मनिर्भर और साहसी बनना होगा, ताकि वह स्वयं ही जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या का समाधान करने में सक्षम हों और दूसरों पर आश्रित न रहे।
ReplyDeleteलड़के लड़कियॉ के सामान अधिकार है
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है
वैसे वैसे लडके लड़कियों में भेद खत्म हो रहा है ।वर्तमान में इनमें से कई बिंदु लगभग समाप्त हैं लेकिन कुछ कुप्रथाओं तथा अज्ञानता के कारण अभी चल रहे हैं जिन्हें शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है।
As education is increasing the gap between boys and girls is ending. Girls too can do all the work and their rights are equal to boys. So all the discrimination against girls should be abolished.
ReplyDeleteजेंडर भेदभाव एक कुरीति है जो समाज को वर्षो से खोखला करती चली आ रहीं है |इसे हमे मिलकर समाप्त करना ही hoga|
ReplyDeleteआज के समाज में जेंडर आधारित असमानता कमी आई है फिर हमें शिक्षा के माध्यम से और सुधार की जरूरत है
ReplyDeleteशिक्षा के व्यापक प्रचार-prasar से लिंग भेद काफी हद तक कम हो गया है हमें अपनी विचारधारा को और अधिक सशक्त करने की कोशिश करते हुए बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।
ReplyDeleteलड़का लड़की एक समान
ReplyDeleteआओ अपने देश को बनाएं महान
मैं मोहम्मद हारुन प्राथमिक विद्यालय गौैहानी सुजानगंज जौनपुर मैं सहायक अध्यापक हूं मैं मानता हूं कि लोगों की सोच अभी 21 वीं शताब्दी तक नहीं बदली है लेकिन शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे सब को बदल देगी आज पहले से काफी बदलाव आया है अब लगभग काफी लोग ऐसा नहीं करते हैं लेकिन जहां अशिक्षा है वहीं भेदभाव हो रहा है
ReplyDeleteलिंग भेद समाज की उन्नति मे बहुत बड़ा बाधक है । जब भी बात किसी भी gender के अधिकारों की होती है तब हम जैसे ही समाज के पढ़े लिखे कथित समझदार लोगों द्वारा हर क्षेत्र मे समानता एवं बराबरी के अधिकार की बात का पुरजोर समर्थन करते है, जबकि घरेलू परिवेश, विद्यालयी परिवेश मे आते ही खासतौर से स्त्रीलिंग या साफ शब्दों मे कहा जाए तो बहन- बेटियों के कुछ अधिकारों का हनन शुरू हो जाता है, चूंकि भारत प्रारंभ से ही पुरुष प्रधान सामाजिक ढांचे को ढोता चल आया है। जिसके कारण समाज मे महिलाओ की स्थिति पुरुषों के मुकाबले दयनीय रही है। विगत दो दशकों मे लिंग भेद समाप्त करने की कोशिशों का परिणाम यह रहा की समाज के कुछ प्रतिशत बहन-बेटियाँ पढ़ लिख कर घर-समाज-देश का नेतृत्व करती आयी है, जोकि पहले पुरातन समय से ही पुरुषों के अधिकार मे था। वर्तमान मे लिंग भेद को समाप्त करने हेतु प्रारम्भिक स्तर से ही जागरूकता लानी होगी, जोकि केवल शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। अतः हम सब को प्रारम्भिक स्तर के रूप मे प्राथमिक विद्यालय अपने घर से अपने समाज से ही जागरूकता की शुरुआत करनी होगी।
ReplyDelete-: Arunendra Kumar ( assistent teacher) primary school chamaruva purva chitrakoot.
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Deleteसमाज में आज भी मान्यता है कि पुत्र ही पारिवारिक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी है जबकि कानून के अनुसार पुत्र और पुत्री बराबर संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं इस मान्यता को बदलने की जरूरत है इसी प्रकार लड़कियों को परिवार की अस्थाई सदस्य के रूप में मान्यता दी जाती है उन्हें हमेशा कहा जाता है यह तो पराए घर जाएगी जिससे लड़कों के अंदर यह मान्यता बैठ जाती है की मेरी बहन पैतृक संपत्ति के बराबर की हकदार नहीं है इस मान्यता को भी बदलने की जरूरत है आजकल अभिभावक लड़कियों के शीघ्र विवाह पर विश्वास नहीं करते काफी कुछ बदलाव हो गया है परंतु कुछ क्षेत्रों में अभी भी शिक्षा पूर्ण होने से पहले ही माता-पिता लड़कियों की शादी कर देते वहां पर ध्यान देने की आवश्यकता है पुरुष को घर की देखभाल करने वाले और सभी का पोषण करने वाले समझा जाता है जबकि आज के युग में लड़कियां भी नौकरी करके परिवार का भरण पोषण कर रही है पुरुष के बराबर आर्थिक गतिविधियां कर रही और परिवार की देखभाल कर रही हैं यह मान्यता भी अब प्रासंगिक नहीं है समाज में आज भी दहेज प्रथा का चलन है एक दूसरे को देख कर और अधिक दहेज की मांग बढ़ती जा रही है मां बाप भी लड़की के पैदा होते ही दहेज की चिंता से ग्रस्त हो जाते और शादी के लायक होते होते दहेज के लिए धन का संग्रह कर लेते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है की इतना मुझे खर्च करना ही पड़ेगा इस परंपरा को खत्म करने की आवश्यकता है इसके लिए पुरुष को ही यह समझना होगा की यह प्रथा अच्छी नहीं है लड़कों को ही बिना दहेज के शादी करने की शुरुआत करनी पड़ेगी किस प्रकार से मीना की दादी ने बड़ा टुकड़ा मीना को न देकर राजू को दिया यह भी एक प्रचलित परंपरा है की लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक वरीयता दी जाती है दादी जो कि स्वयं भी एक लड़की थी वह मीणा को प्रोत्साहित ना करके राजू को बड़ा हिस्सा देती है इस परंपरा को बदलने की जरूरत है किशोरियों को मासिक धर्म के समय स्वच्छ पैड के लिए जरूरी शिक्षा देना मां बाप का फर्ज है अन्यथा पुरानी मान्यता के अनुसार गंदे कपड़े का उपयोग करके जिंदगी भर रोग से ग्रसित हो जाती है यहां तक की गर्भाशय का कैंसर का कारण भी यही स्वच्छता का ना होना है बहुओं को मासिक धर्म के समय रसोई से दूर रखना भी एक प्रचलित परंपरा है इसे भी बदलने की जरूरत है अक्सर हम देखते हैं लड़कियों से हम मेहनत के काम नहीं कराते उन्हें कमजोर समझते हैं और लड़कों से शारीरिक श्रम अधिक कराते हैं जबकि ऐसा कोई काम नहीं है जो लड़कियां ना कर सके पता है इस मान्यता को भी बदलने की आवश्यकता है अगर हम विचार करें तो कोई भी ऐसा काम नहीं है जो लड़का और लड़की दोनों ना कर सके इसलिए शिक्षक होने के नाते समाज में बदलाव लाने की जिम्मेदारी हमारी है हम सभी लोग मिलकर समाज की बुराइयों को दूर कर सकते हैं और नए बदलाव ला सकते हैं धन्यवाद
ReplyDeleteलड़का लड़की को समान अधिकार,
ReplyDeleteक्योंकि दोनो से बनता परिवार |
चाहे नर हो,या हो नारी |
बराबर सम्मान के अधिकारी |
समाज में शिक्षा ने काफी हद तक जागरूकता ला दी है, परंतु कुछ स्थानों पर अब भी भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया जाता है। हमें स्त्रियों को उनके इन अधिकारों से अवगत कराना होगा, पुरुषों और स्त्रियों दोनों में समानता का भाव विकसित करने के लिए बहुआयामी प्रयास करने चाहिए। कानून को भी सख्त बनाना एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
ReplyDeleteआज भी हमारा समाज इन रूढ़वादी विचारों से पूरी तरह से अलग नहीं हो पा रहा है । इनकी जड़े अभी भी हमारे समाज को खोखला कर रहीं हैं ।सिर्फ समग्र शिक्षा और हमारी-आपकी समभाव सोच (विचार धारा ) द्वारा ही हम परिवर्तन ला सकते हैं ।
ReplyDeleteलडकिया भी लड़को के समान संपत्ति में उत्तराधिकारी है पर ये बात समाज के लिए आज भी एक्सेप्ट नही की जा रही।लड़कियों की तरफ रूढ़िवादी सोच काफी है।इस तरह की सोच को कम करने में ये मॉड्यूल काफी हद तक सहायक होगा।पूर्वांचल में आज भी लड़कियों का विवाह कम उम्र में कर दिया जाता है।बाहर का कोई भी कार्य पुरुष द्वारा किया जाता है और साथ ही उनके निर्णय मानने भी होते है घर वालो को।हमे लगता है काफी महत्वपूर्ण बिंदु पर चर्चा करने का एक अच्छा प्लेटफॉर्म बन रहा है इस मॉड्यूल की मदद से।
ReplyDeleteजितनी भी समानतायें या असमानतायें लड़का और लड़की में है वो सब ईस्वर से प्राप्त है। किसी व्यक्ति विशेष का इसमे कोई हाथ नही है इसलिए किसी भी व्यक्ति को हक़ नही है कि इन्ही बातों को लेकर समाज मे लड़का और लड़की में अंतर करें। सभी का अपना महत्व है और सभी को उतना ही सम्मान मिलना चाहिए।
ReplyDeleteवर्तमान में लड़कों और लड़कियों को समाज में बराबर के अधिकार मिलने प्रारंभ हो गए हैं । सरकार भी इस दिशा में सकारात्मक प्रयास कर रही है ।सरकार द्वारा ऐसी कानून बनाए जा रहे हैं जिससे पैतृक संपत्ति में महिलाओं को भी बराबर का अधिकार मिले । आज समाज में महिला एवं पुरुषों के प्रति कुछ मानसिक बदलाव आए हैं । महिलाएं भी चिकित्सा , शिक्षा , सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा , सामाजिक सुरक्षा आदि क्षेत्रों में पुरुषों के साथ मिलकर कार्य कर रही हैं।
ReplyDeleteसमाज में रूढ़वादी विचारधारा से सामाजिक बदलाव न के बराबर है। अभी भी कुछ सामाजिक प्रतिबन्ध महिलाओं पर लगा है। सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक विचार से उत्पन्न वातावरण समाज को दीमक की तरह चाट रहा है। लड़का व लड़की में भेदभाव परिवार से उत्पन्न होता है और वह शिक्षित समाज में अभिशाप बन कर रह जाता है। शिक्षा समाज की एक ऐसी कडी है जो सबको समभाव से बाँधती है । महिला पैदा नहीं होती बल्कि उसे बनाया जाता है। दहेज लेना और देना समाज के लिए बहुत ही अनुचित परम्परा है। और अन्य कुरीतियां भी महिलाओं के ऊपर लदी है। जो विद्यालयी शिक्षा के माध्यम से लिंग भेद को पूर्ण रूप से समाप्त करना चाहिए।
ReplyDeleteहमारा मानना है कि समाज में यदि महिलाओं को प्राथमिकता दी जाए अर्थात वरीयता दी जाए तो हो सकता है कि पुरुषों के समाज में उन्हें अपना हक मिल सके और धीरे-धीरे लैंगिक असमानता घटती जाए स्वर्ण समाज बनाने के लिए हमें पुरुष प्रधानता को त्यागना होगा
ReplyDeleteआज भी हमारे समाज में आज कुछ ऐसे प्रथाओं का चलान है जिससे लैंगिक भेदभाव उत्पन्न होता है अधिकतर देखा जाता है कि पुत्र ही उत्तराधिकारी होता है पुत्री नहीं l बालिकाओ का विवाह जल्दी कर दिया जाता है आज भी दहेज प्रथा की समस्या है लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता है लड़कियों को समाज मे कम बाहर जाने नही दिया जाता है l समाज में ऐसे लिंग भेद को समाप्त करना अत्यंत अति आवश्यक है।
ReplyDeleteउक्त संस्थानों विचारों प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता है क्योंकि ये सब समाज के एक अधे हिस्से के साथ भेद- भाव है । यह उनके साथ अन्याय है । इनसे समाज का उत्थान नहीं हो सकता । यह हमारे संवैधानिक मूल्यों विपरीत है । यह सम्पूर्ण मानवता के के विरूद्ध है ।
ReplyDeleteवैसे तो लड़कियों की शिक्षा ,स्वास्थ्य और
ReplyDeleteशादी विवाह कानूनी अधिकार को लेकर
काफी जागरूकता समाज मे आ गयी है ।
इस मॉड्यूल को पढ़ने के बाद शिक्षकों में भी
नई चेतना ऊर्जा को लेकर जब विद्यालय जायेगे और नया कुछ सीखकर जायेगे और
बच्चों और अभिभावकों को सही दिशा निर्देश देगे तो निश्चत ही फर्क पड़ेगा ।
क्योकि एक शिक्षक की बात को सभी लोग सही मानते है ।
दहेज लेना और देना दोनों ही अभिशाप है ।
संगीता देवी
Ups जोलियाबनारस देवां बाराबंकी up
दहेजप्रथा पर शिक्षित वर्ग को समझने की आवश्यकता है . ग्रामीण अंचलों में बाल विवाह करने पर रोक होनी चाहिए.
ReplyDeleteबाल विवाह और दहेज प्रथा की कुरीति को मिटाया ही जाना चाहिए बालिकाएं किसी भी क्षेत्र में कम और पीछे नहीं है। यह कुरीतियां बालिकाओं के विकास में बाधक बनती है।
ReplyDeleteशिक्षा के द्वारा लिंग भेद को समूल नष्ट किया जा सकता है लडकियों को समान अधिकार मिले ,समय पर विवाह हो आदि सभी पूर्वाग्रह समाप्त हो ,तो लिंग भेद को समाप्त कर सकते है
ReplyDeleteLadke hon chahe ldki dono riyasat ke malik hain unme bhed bhav theek nhi hai.
ReplyDeleteLadkiyo ki sadi km umra me nhi krni chahiye unka sarrer machaur nhi ho pata ise hme apko samjhna hoga hm aap jb tk nhi samjhenge tb hm samaj ko kaise smjhayenge
शिक्षक का दायित्व है कि समाज में लिंग भेद को खत्म करने का प्रयास करें लोगों को जागरूक करें। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सरकार द्वारा कुछ हद तक लड़कियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार दिए गए हैं। वर्तमान में समाज बदल रहा है और यह कुरीतियां धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
ReplyDeleteसमाज की शिक्षित होने के साथ साथ इन रूढ़ियों में काफी बदलाव देखा जा रहा है
ReplyDeleteDahej pratha hamare samaj ko subse jada ganda kr rha hai dahej pratha bilkul galt hai hme apko milkr iske khilaf jung chedni hogi sbko samjhana hoga.government ko bhi is pr koi kda kanoon lana pdega
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है लड़के लड़कियों में भेदभाव समाप्त हो रहा है।आज लड़कियों को समान अधिकार प्राप्त हैं और वो भी आज हर क्षेत्र में प्रगति की ओर अग्रसर हैं।
ReplyDeleteसंपूर्ण मानव जाति के उत्थान क लिए सामाजिक जागरूकता अत्यंत आवश्यक है और इसक लिए निश्चित तौर पर मनुष्य को ज्ञान अर्जन काना होगा ताकि वह सही मायनो मे अच्छाई और बुराई मे अन्तर कर पायेगा
ReplyDeleteमह module वास्तव मे एक मीलका पत्थर साबित होगा ।
शिक्षा ने सभी भेदभाव समाप्त कर दिये हैं अब हम हम सबको भी सभी भेदभाव खत्म करने चाहिए और लड़के और लडक़ियों के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए।
ReplyDeleteIt helps in gender equality and awareness
ReplyDeleteसमानता का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है। समाज में शिक्षा एवं जेंडर की अवधारणा स्पष्ट ना होने के कारण इस प्रकार के भेदभाव किए जाते है। पारिवारिक संपति में अब महिलाओं का कानूनी अधिकार है। शिक्षा के प्रसार से अब समाज में विवाह की औसत आयु बड गई है। देखभाल की आवश्यकता महिला एवम् पुरुष दोनों को होती है। दहेज प्रथा किसी भी समाज के लिए अभिशाप है जो अब धीरे धीरे लोगो के शिक्षित एवम् जागरूक होने से समाप्त हो रही है। मासिक धर्म में स्वच्छता एवम् शारीरिक गतिशीलता महिलाओं को शारीरिक रूप से स्वस्थ एवम् बीमारियों से बचाने के लिए आवश्यक है। आज की महिलाएं शादी होने के बाद भी जिस शिदत से दोनो परिवारों के सदस्यों का ख्याल रखती हैं वो इनके स्थाई सदस्य होने का परिचायक हैं।
ReplyDeleteसमाज में इन सभी रूढ़ियों का प्रमुख कारण अशिक्षा रहा हैं। जैसे समाज में शिक्षा का प्रसार बड़ रहा है, वैसे ही ये रूढ़िया भी समाप्त होते जा रही हैं।
शिक्षा ने सभी भेदभाव खत्म कर दिये हैं लिहाज़ा हम सबको भी सभी भेदभाव खत्म करने चाहिए और समनता का व्यवहार करना चाहिए
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बड़ रही है सबको चाहे वह लड़का हो या लड़की सभी क्षेत्र में समान अवसर और समान अधिकार मिलना चाहिए
ReplyDeleteउल्लेखित विचारों और प्रथाओं को निशंदेह समाप्त करने की जरुरत है, क्योंकि समानता का अधिकार हर इन्सान को है फिर ऐसे में लड़का, पुरुष को वरीयता मिले ऐसा क्यों | पुरुष या स्त्री दोनों ही सामान है तो प्रथाओं को भी पुरुष प्रधान न होकर एक सामान होना चाहिए
ReplyDeleteनिश्चित रूप से इन प्रथाओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि ये प्रथाएं लैंगिक आधार पर भेदभाव को प्रोत्साहित करती हैं।
ReplyDeleteSince then time has changed, now women have been empowered with equal opportunities in the society, in the present scenario women security has become a sensitive issues. 'Shakti Mission' type of program will encourage women to participate in different activities in the society
ReplyDeleteलड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिए
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteशिक्षा ने सभी भेदभाव ख़तम कर दिए हैं, अब लड़कियां भी लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर हर क्षेत्र मे चल रहीं हैं।इसलिए हम सब को भी जागरूक हो जाना चाहिए जेंडर के इस भेदभाव को खतम कर देना चाहिए।
ReplyDeleteजैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteJaise logon mein jagrukta AVN Shiksha badh rahi hai vaise vaise ladke ladkiyon mein antar samapt ho raha hai sabhi kshetron mein ling bhed samapt hona chahie balak Balika aur transgender ko hamesha saman suvidhaen aur bhagidari milane chahie
ReplyDeleteMera Manana Hai Ki ki Ham Nara Lagate Hain beta beti Ek Saman Sabko Shiksha Sabko Gyan Fir Bhi Hamare Manav mastishk Mein yah bhinnata Kahin na kahin Ghar Parivar aur Samaj se aate hi sarvpratham Hamen apni Soch ko sudharne ki jarurat hi Kahin na kahin Main mahsus Karta Hun Ki Shikshak Ho doctor Ho engineer Ho yah Kisi bhi tab ki ka koi bhi vyakti Ho Ham Kisi Manch per samahita mein ladka ladki Ek Saman Ho is per bahut bade bade Waqt Wale Hain parantu Hamare mananiy mastishk mein Kahin na kahin abhineta ki vah vichardhara Ghar Ki Hui Hai Jisko Hamen aapko nikal fekne ki jarurat hai Jis Din Humne nikal Diya Usi Din Se a Ham Apne bacchon main main language asamanta ko km karne mein Jarur Safal ho jaaye
ReplyDeleteMera Manana Hai Ki ki Ham Nara Lagate Hain beta beti Ek Saman Sabko Shiksha Sabko Gyan Fir Bhi Hamare Manav mastishk Mein yah bhinnata Kahin na kahin Ghar Parivar aur Samaj se aate hi sarvpratham Hamen apni Soch ko sudharne ki jarurat hi Kahin na kahin Main mahsus Karta Hun Ki Shikshak Ho doctor Ho engineer Ho yah Kisi bhi tab ki ka koi bhi vyakti Ho Ham Kisi Manch per samahita mein ladka ladki Ek Saman Ho is per bahut bade bade Waqt Wale Hain parantu Hamare mananiy mastishk mein Kahin na kahin abhineta ki vah vichardhara Ghar Ki Hui Hai Jisko Hamen aapko nikal fekne ki jarurat hai Jis Din Humne nikal Diya Usi Din Se a Ham Apne bacchon main main language asamanta ko km karne mein Jarur Safal ho jaaye
ReplyDeleteप्रकृति प्रदत्त कुछ असमानता लड़की लड़कों में जन्मजात होती है । समस्या उनमें निहित अंतर का नहीं, समस्या उनके भेदभाव से है । आज समाज में इन्हे स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है । बहुत सी वर्जनाएं हैं जिन्हें धीरे धीरे समय ही तोड़ सकता है । न्यायालय ने इन्हे समान अधिकार देने की बात कही है, सच भी है, दिया जाना न्यायोचित भी है किन्तु उसे जब न्यायालय में जाकर लेना पड़े तो न्याय और मनुष्यता कहीं न कहीं लज्जित जरूर होगा क्योंकि यह निर्णय परिस्थिति जन्य था न कि आवश्यक । आज धीरे धीरे ही सही किन्तु बहुत सी वर्जनाएं खंडित होती जा रही है ।
ReplyDeleteAll the above mentioned statements are age old and formulated to keep girls and women away from the main stream of the society. This needs to be changed with the changing scenario to provide equal opportunities to all without any discrimination.
ReplyDeleteदहेज प्रथा एक कुरीति है ऐसे दहेज लेने या देने वालो को सजा मिलनी चाहिए
ReplyDeleteलड़कियों का विवाह कम उम्र में नहीं करना चाहिए अगर हम इस तरीके की कोई प्रथा कहीं देखते है तो हमे खुलकर इसका विरोध करना चाहिए पुलिस प्रशासन को तत्काल इससे अवगत कराना चाहिए।
स्त्री विमर्श और महिला सशक्तिकरण की संकल्पना आज धीरे धीरे समाज का एक गंभीर विमर्श होती जा रही है । समाज खंडित वर्जनाओं को कब तक ढो सकेगा ? परिवर्तन संसार का और समाज का एक सत्य संकल्पना है । पुरानी मान्यताओं को उखाड़ सकना अपनी संस्कृति को उखाड़ने सदृश है क्योंकि कहीं न कहीं भारत परम्पराओं और संस्कृतियों का देश है । हां, एक गुंजाइश जरुर है कि धीरे धीरे जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार व्यापक होता जाएगा बहुत सी धारणाएं , मिथक स्वयं खंडित होकर आधुनिक रूप में संवर कर सामने आते जाएंगे । वैसे यह संकल्पना परम्परा और आधुनिकता से भी सम्बन्धित है । अस्तित्ववाद हर रूप में स्वयं को पुष्ट करता समाज में व्याप्त होता जा रहा है । आज स्त्री पुरुष के अस्तित्व को स्वीकारने की समान परम्परा होती जा रही है और होनी भी चाहिए किन्तु जितने भी इस तरह के विमर्शों के पुरस्कर्ता है उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि स्वतंत्रता और स्वछंदता दोनों समानार्थी जरूर लगते हैं किन्तु दोनों दो विमर्श और भाव बोध है । स्त्री विमर्श जो आज एक फैशन बनता जा रहा है उसके मूल में स्वतंत्रता की तलाश नहीं वरन् स्वछंदता की तलाश है जो स्त्री के लिए उचित नहीं क्योंकि हम सामूहिक समाज पर किसी एक विमर्श को थोप नहीं सकते । बस इन सब विमर्शो का निष्कर्ष इतना ही है कि यह किसी भी तरह स्त्री पर किसी भी प्रकार से अन्याय का विरोधी हो ।
ReplyDeleteNo discrimination should be there
ReplyDeleteजागरूकता एवं शिक्षा के माध्यम से
ReplyDeleteजेंडर भेद के विचारो और कुप्रथाओ
को बदला जा सकता है ।परिवर्तन के
फलस्वरूप लड़किया को कुछ अधिकार
मिले है, कुछ कुप्रथाए भी बदली है ।परंतु
अभी बहुत कुछ बदलाव की जरूरत है ।
लिंग भेदभाव अतीत से ही हमारे समाज का हिस्सा रहा है। अधिकांश वरिष्ठ/बुजुर्ग लोग आज भी लड़के लड़कियों में भेदभाव करते देखे जा सकते हैं पुत्र पैदा होने पर ही वंश चलेगा यह भावना हर कहीं देखी जा सकती है।जैसे जैसे शिक्षा बढ़ रही है। लड़के लड़की में अंतर समाप्त ही रहा है। लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिये।
ReplyDeleteएक समान यह बात बिल्कुल सत्य है आज महिलाएं भी वो सब कार्य कर रही हैं जो पुरुष कर सकते हैं आज महिलाएं घरेलू काम काज तक ही सीमित नहीं है आज वह हर कार्य करने में सक्षम हैं फिर चाहे वो डॉक्टर हो, इंजीनियर, वकील, अध्यापक पायलट आदि में अपना नाम चमका रही हैं।
ReplyDeleteकिन्तु आज भी हमारे समाज में ऐसे क्षेत्र हैं यहां लडकियों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है उन्हें कमज़ोर समझकर उन्हें सिर्फ घरेलू कामों तक ही सीमित रखा जाता है उन्हें पढ़ने का मौका तक नहीं दिया जाता है। चिंता की बात है के ऐसे क्षेत्रों में आज भी सरकार के सख्त कानूनों के बावजूद भी लिंग परीक्षण का धंधा खुलेआम चल रहा है।
एक समान यह बात बिल्कुल सत्य है आज महिलाएं भी वो सब कार्य कर रही हैं जो पुरुष कर सकते हैं आज महिलाएं घरेलू काम काज तक ही सीमित नहीं है आज वह हर कार्य करने में सक्षम हैं फिर चाहे वो डॉक्टर हो, इंजीनियर, वकील, अध्यापक पायलट आदि में अपना नाम चमका रही हैं।
ReplyDeleteकिन्तु आज भी हमारे समाज में ऐसे क्षेत्र हैं यहां लडकियों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है उन्हें कमज़ोर समझकर उन्हें सिर्फ घरेलू कामों तक ही सीमित रखा जाता है उन्हें पढ़ने का मौका तक नहीं दिया जाता है। चिंता की बात है के ऐसे क्षेत्रों में आज भी सरकार के सख्त कानूनों के बावजूद भी लिंग परीक्षण का धंधा खुलेआम चल रहा है।
लड़कियां भी सभी काम कर सकती हैं और उनके अधिकार भी लड़कों के बराबर हैं। इसलिए लड़कियों से भेदभाव वाली सभी प्रथाएं समाप्त हो जानी चाहिए
Deletehamre raaj ko prerit raaj banane ke liye warbari our asmatha ka hona jaruri h visas sixha ki gatividhi me ladke aur ladkiyo ke bhed bhao ke badhawa dena uchit hi nhi wali ki aprhad h ladkyu ka sambadhnik aadkar dena aur unko har kam me baewar rakha ek prerik raaj ki uchit our acchi pahel hogyi
ReplyDeleteबेटियों पर बेटो की वरीयता आज के समाज में बिल्कुल गलत है, आजकल बेटा बेटी एक समान है, बेटियां बेटों से किसी काम में कम नहीं है, उनसे हर कार्य में आगे निकल रही है
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